विराट कोहली और टीम इंडिया नहीं ले पाएंगे कड़कनाथ का लुत्फ, ये है वजह
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झाबुआ । कम फैट और अधिक प्रोटीन के लिए पहचाने जाने वाले कड़कनाथ मुर्गे (चिकन) को टीम इंडिया की नियमित डाइट में शामिल करने की सलाह तो यहां के कृषि विज्ञान केंद्र ने दे दी लेकिन इस बात पर असमंजस है कि अगर बीसीसीआई ने हां कह दिया तो इसे भेजेंगे कैसे? दरअसल इसे जिले से बाहर भेजने के पुराने अनुभव अच्छे नहीं हैं। कड़कनाथ एप बनाने के बाद इस पर जो ऑर्डर आ रहे हैं, वही पूरे नहीं हो पा रहे हैं। उत्पादन तो पर्याप्त मात्रा में हो रहा है लेकिन कड़कनाथ मुर्गे को दूर तक भेजने की व्यवस्था नहीं बन पा रही है।
कड़कनाथ का बाजार बढ़ाने के लिए काफी कोशिशें हुईं और इनका असर भी हुआ। इस प्रजाति के मुर्गे को पहचान मिली, झाबुआ के नाम से यह जाना जाने लगा लेकिन आपूर्ति की बेहतर व्यवस्था का इंतजार है। समस्या लंबी दूरी के लिए परिवहन की आ रही है। जिन उत्पादकों को एप से जोड़ा गया, उन्हें रोज देशभर से दर्जनों ऑर्डर मिलते हैं लेकिन उन्हें इंकार करना पड़ता है। हालांकि सुझाव देने वाले कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकारी इसके लिए रास्ता भी सुझाते हैं। उनके मुताबिक अगर टीम इंडिया चाहेगी तो उनके द्वारा तय स्थान पर चूजे भेजकर इसकी आपूर्ति की जा सकती है। इसके अलावा तय जगह पर भेजने के लिए दूसरे विकल्प भी तलाशे जा सकते हैं।
एप वालों की ये स्थिति
एप के माध्यम से जुड़े मुर्गीपालकों में सबसे प्रमुख हैं रुंडीपाड़ा के विनोद मेड़ा। विनोद का कहना है, शुरू से अभी तक हर दिन कई फोन आते हैं। कभी-कभी 100 फोन तक आ जाते हैं। लेकिन जो दूर होते हैं, उन तक मुर्गा पहुंचाना मुश्किल है। शुरुआत में काफी दूर तक चूजे पहुंचाए भी, लेकिन ये काफी महंगा पड़ा। उनके अलावा खेजड़ा गांव में और छोटा गुड़ा गांव में दो और पालक हैं। विनोद के अनुसार अभी उनके पास 1200 का स्टॉक है। हर महीने सिर्फ 50 से 60 बिक रहे हैं। बाहर सिर्फ 5-10 जाते हैं। वो भी खरीदार की खुद की व्यवस्था पर।
इतने हैं दाम
एक दिन का चूजा- 60 रुपए
15 दिन का चूजा- 70 रुपए
बड़ा मुर्गा- 800 रुपए का
बड़ी मुर्गी- 700 रुपए की
ये गिनाए जाते हैं फायदे
सामान्य मुर्गे से प्रोटीन 13 फीसदी ज्यादा। लगभग 23 से 24 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
फैट यानी वसा की मात्रा काफी कम, 1.94 से 2.6 प्रतिशत।
कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 100 ग्राम में सिर्फ 59 से 60 मिलीग्राम।
इसके अलावा 13 तरह के एसिड इसमें पाए जाते हैं, जो शरीर के लिए लाभदायक हैं।
(स्रोत: नेशनल रिसर्च सेंटर ऑफ मीट)
सेहत के लिए बेहतर
माना जाता है कि कड़कनाथ का चिकन सेहत के लिए उपयुक्त है। इसमें वसा कम होती है और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें कई तरह के विटामीन भी पाए जाते हैं। एक शोध के मुताबिक हृदय रोगियों और कोलेस्ट्रॉल पीड़ितों के लिए यह फायदेमंद है। बशर्ते इसे बनाने में अतिरिक्त वसा वाली चीजें उपयोग नहीं की जाएं।
पूरी तरह से काला
कड़कनाथ मुर्गे का रंग काला होता है। साथ ही इसका रक्त और मांस भी काला होता है। स्थानीय भाषा में इसे इस कारण कालमांसिया कहा जाता है। यानि काले मांस वाला।
ऐसे बढ़ता है
21 दिन में अंडे से चूजा निकलता है।
तीन से चार महीने में वयस्क मुर्गा तैयार होता है।
हार्ट अटैक रोगियों के लिए फायदेमंद
कड़कनाथ का काला मांस हार्ट अटैक रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। इसकी वैज्ञानिक शोध में पुष्टि हुई है। क्योंकि इसमें इस रोग से बचाव हेतु औषधीय गुण होते हैं। कड़कनाथ के मीट में तंत्रिका विकार से संबंधित औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। स्थानीय जनजातियों में इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर करने में भी किया जाता है।
मिला है जीआई टैग
झाबुआ को कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गे का जीआई टैग इसी साल मिला है। यानी ये माना जा चुका है कि इस प्रजाति का उद्भव इसी जिले में हुआ। गैर सरकारी संस्था ग्रामीण विकास ट्रस्ट ने पांच साल पहले इसके लिए आवेदन दिया था। तब से कुछ नहीं हुआ। इस बीच छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा की एक संस्था ने आवेदन दे दिया। तब झाबुआ के पुराने आवेदन पर हरकत शुरू हुई और बड़े स्तर पर प्रयास शुरू हुए। बाद में छत्तीसगढ़ ने अपना दावा वापस ले लिया।
प्रोटीन
25 फीसदी से ज्यादा (सामान्य मुर्गे में 13 फीसदी) कोलेस्ट्रॉल 0.73 से 1.05 हार्मोन्स को संतुलित रखने वाली अमिनो एसिड के साथ-साथ विटामिन का बड़ा सोर्स।
झाबुआ ही रह गया पीछे
कभी झाबुआ से ही कड़कनाथ को अपने यहां ले जाने वाले छत्तीसगढ़ के कई जिलों ने आपूर्ति के मामले में झाबुआ को पीछे छोड़ दिया है। यहां राजधानी रायपुर में ही कई जगह कड़कनाथ एक फोन पर मिल रहा है। इसके अलावा कांकेर, दंतेवाड़ा, बस्तर, जगदलपुर, कोरबा सहित कई जिलों में बड़े स्तर पर इसका उत्पादन हो रहा है। यहां से आपूर्ति को लेकर भी काफी व्यवस्थाएं की गई हैं। दंतेवाड़ा में महिलाओं के समूह ने एक साल में हैदराबाद की एक कंपनी को डेढ़ क्विंटल कड़कनाथ चिकन बेचा। उन्हें प्रति क्विंटल 750 रुपए मिले। कंपनी ने इस मांस का निर्यात भी किया। छत्तीसगढ़ में प्रशासन और सरकार ने भी इसकी मार्केटिंग के लिए काफी गंभीरता दिखाई है। ब्रांडिंग के लिए इसी साल मई में दंतेवाड़ा के कासोली में कड़कनाथ मुर्गे और मुर्गी का विवाह कराया गया।