नीदरलैंड की अदालत ने शेल को दिया झटका: क्या तंबाकू उद्योग जैसा हो जाएगा तेल-गैस इंडस्ट्री का हाल!
गौरतलब है कि तंबाकू कंपनियां लगातार सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकारी नीतियों के निशाने पर बनी रहती हैं।इस हफ्ते बड़ी तेल-गैस कंपनियों लिए दो बुरी खबरें ले कर आया। उसके बाद इन कंपनियों और उनके मुनाफे के भविष्य को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं। कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि इन कंपनियों को आने वाले दिनों में वैसे ही हालात का सामना करना पड़ सकता है, जैसा तंबाकू कंपनियों को वर्षों से करना पड़ रहा है।
नीदरलैंड्स में बीते बुधवार को एक अदालत ने दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में से एक शेल को एक दशक के अंदर अपने कार्बन उत्सर्जन में 45 फीसदी कटौती करने का आदेश दिया। दुनिया में यह पहला मौका है, जब किसी अदालत ने किसी बड़ी ऊर्जा कंपनी को इस तरह का आदेश दिया हो। हालांकि ये आदेश सिर्फ नीदरलैंड्स में लागू होगा, लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे एक मिसाल कायम हुई है। दूसरे देशों की अदालतें भी इससे प्रेरित हो सकती हैं।
इस अदालती फैसले के कुछ ही घंटों के बाद खबर आई कि एक और बड़ी तेल कंपनी एक्सॉनमोबिल के अमेरिका स्थित शेयर होल्डर्स ने दो ऐसे लोगों को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल करने का फैसला किया है, जिन्हें पर्यावरणवादी कार्यकर्ताओं ने मनोनीत किया था। ये फैसला मतदान के जरिए हुआ। इसके पहले शेवरॉन कंपनी के शेयर होल्डर्स ने एक प्रस्ताव भी पास किया था, जिसमें कंपनी से कार्बन उत्सर्जन में कमी करने को कहा गया।
गौरतलब है कि एक्सॉन कंपनी ने कार्यकर्ताओं की तरफ से मनोनीत व्यक्तियों को निदेशक मंडल में शामिल करने का कड़ा विरोध किया था। लेकिन शेयर होल्डर्स के बहुमत पर उसका असर नहीं हुआ। उन्होंने साफ संदेश दिया कि वे जलवायु परिवर्तन रोकने के उपायों पर सख्ती से अमल चाहते हैँ। उधर नीदरलैंड्स की अदालत ने शेल से दो टूक कहा है कि उसे जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए हुई पेरिस संधि में तय लक्ष्यों के मुताबिक अपनी उत्सर्जन सीमा को तय करना होगा।
विश्लेषकों का कहना है कि अब हुई शुरुआत तेल और गैस कंपनियों से आगे जाते हुए दूसरे उद्योगों तक भी पहुंच सकती है। ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि नीदरलैंड्स में आया अदालती फैसला और एक्सॉन के शेयर होल्डर्स का निर्णय एक महत्वपूर्ण बदलाव है। यह जलवायु परिवर्तन को लेकर पैदा हुई नई जागरूकता का संकेत है।
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एक थिंक टैंक के प्रमुख जेसॉन बॉर्डोफ ने वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा- ‘ये घटनाएं बढ़ रही इस अपेक्षा को दर्शाती हैं कि तेल-गैस कंपनियों को अपनी कारोबारी रणनीति जलवायु परिवर्तन संबंधी दीर्घकालिक लक्ष्यों के मुताबिक ढालनी चाहिए।’
उधर यूरोपीय एनजीओ क्लाइंटअर्थ से जुड़े वकील पॉल बेनसॉन ने वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू से कहा- ‘अदालतें अब सरकारों की नीति संबंधी नाकामी के परिणामों को दूर करने के लिए आगे आ रही हैं। अगर सरकारों और कॉरपोरेट सेक्टर की नीतियां पर्याप्त होतीं, तो अदालतों को इस मामले में ज्यादा भूमिका नहीं निभानी पड़ती।’ जानकारों के मुताबिक साल 2000 के बाद से पर्यावरण रक्षा संबंधी 3000 से ज्यादा याचिकाएं यूरोपीय अदालतों मे दायर की गई हैं। लेकिन यह पहला मौका है कि उन पर एक बड़ा फैसला आया है।
विश्लेषकों ने कहा है कि कुछ दशक पहले ऐसा ही माहौल तंबाकू कंपनियों के खिलाफ बना था। तब उन पर कई पाबंदियां लगीं। उसे एक गंदे उद्योग के रूप में देखा जाने लगा। अब जलवायु परिवर्तन संबंधी चेतना बढ़ने के साथ ऐसा ही तेल और गैस उद्योग के साथ हो सकता है।