एक लोकेशन पर दो क्रू तैनात कर पूरी की शूटिंग, पड़ताल में सामने आया कि मोदी बायोपिक जल्द पूरा करने बेताब थे मेकर्स
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‘पीएम नरेंद्र मोदी बायोपिक’ फिल्म के बारे में भले ही उसके मेकर्स लाख बार कहें कि इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है, पर इस बारे में की गई भास्कर की डिटेल इंवेस्टिगेशन से पता चला है कि इसके मेकर्स इसे चुनाव से पहले पूरा करने के लिए खासे उतावले थे। फिल्म के कॉस्ट्यूम डिजाइनर चंद्रकांत सोनावणे को कलाकारों के कॉस्ट्यूम तैयार करने के लिए महज 20 दिन का समय दिया गया था।
शूटिंग में इतनी तेजी बरती गई कि एक ही लोकेशन पर दो क्रू तैनात कर अलग-अलग शेड्यूल शूट कराए गए। शूटिंग के 10 दिन बचाने का टास्क सामने रख क्रू और कलाकारों से लगातार काम लिया गया। पोस्ट प्रोडक्शन, एडिटिंग और स्पेशल इफेक्ट्स के काम में तो दिन रात भी नहीं देखे गए।
अपनी रिसर्च के तहत डायरेक्टर ओमंग कुमार ने आनन-फानन में गुजरात में उन स्थानों का दौरा किया जहां नरेंद्र मोदी ने अपना बचपन बिताया था। थोड़े समय में उन्होंने मोढेरा सूर्य मंदिर, पाटन नगर में एक कुआं-रानी की वाव, भुज में पत्थरों की संरचना और सफेद रेगिस्तान की यात्रा की।
10 मार्च को उत्तराखंड में कल्प केदार मंदिर के पास शूटिंग के दौरान विवेक ओबेरॉय चोटिल हो गए। आनन फानन में ही उनका इलाज कर दिया गया और उन्होंने शूटिंग से कोई ब्रेक नहीं लिया।
फिल्म में कुल मिलाकर 4000 कॉस्ट्यूम यूज हुए हैं। अकेले विवेक ओबेरॉय के लिए 120 अलग-अलग कॉस्ट्यूम थे। फिल्म में एक रैली का सीन है। उसमें 2000 जूनियर आर्टिस्ट रैली निकालते दिखते हैं। उनके कॉस्ट्यूम भी रेडी रखने थे। अमित शाह के कैरेक्टर के लिए 15 से।
हमने अपनी पड़ताल में इस फिल्म के सेट पर मौजूद कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों से बात की। कॅरिअर रिस्क के कारण उन्होंने अपना नाम तो उजागर करने की स्वीकृति नहीं दी, पर हमें मेकर्स की जल्दबाजी की कई महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। उन्होंने बताया कि शूटिंग मल्टीपल सेटअप और उतने ही मल्टीपल यूनिट में हुई। एक लोकेशन पर सीन शूट हो रहा है तो सेम टाइम पर सेम लोकेशन के किसी और हिस्से में लाइटिंग और कैमरा सेट किए जाते थे। मल्टीपल कैमरा के हिसाब से सेटअप होता था। एक सेट पर प्रोडक्शन से दो यूनिट हुआ करती थीं। एक यूनिट सीन शूट करती थी। दूसरी यूनिट पिकअप शॉट लिया करती थी। शिफ्ट का निर्धारण भी उसी हिसाब से किया करते थे। तेजी दिखाकर 10 दिन बचा लिए जल्दबाजी का सबूत यह भी है कि मल्टीपल सेटअप को अचीव करने की शेड्यूलिंग भी सोच समझकर हुई। उसके तहत ही इक्विपमेंट और आर्टिस्ट डिवाइड किए जाते थे। इन सब इंतजामों के चलते टीम ने फिल्म के 10 दिन बचा लिए थे। ऑफिस इंटीरियर और इनडोर हाउस की शूटिंग के फ्रंट पर ही आउटडोर के लोकेशन चुने गए थे। रीटेक भी बहुत कम हुए।