मध्यप्रदेश चुनाव: शिवराज ‘मामा’ को बहनों पर क्यों है इतना भरोसा
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के लिए महिलाओं के मतदान प्रतिशत में लगभग 4 % के उछाल को सीएम शिवराज सिंह चौहान अपनी जीत की गारंटी की तरह प्रचारित कर रहे हैं. हालांकि ये कहना गलत नहीं है कि बीते चुनावों में भी शिवराज को महिलाओं का साथ मिला था और इसी के मद्देनज़र उन्होंने राज्य में अपनी ‘मामा’ वाली इमेज पर इस बार भी फोकस किया हुआ है.
इसी स्ट्रेटजी के तहत बीजेपी ने महिलाओं को ध्यान में रखकर मध्य प्रदेश में समृद्ध मप्र दृष्टि पत्र और नारी शक्ति संकल्प पत्र जारी किए. नारी शक्ति संकल्प पत्र में 50 घोषणाएं की गईं थीं जिसमें महिलाओं के लिए मुफ्त स्कूटी से लेकर फ्री शिक्षा जैसे कई लोकलुभावन वादें शामिल हैं.
बढ़ गया महिला मतदान
बता दें कि 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ने के पीछे महिलाओं के मतदान प्रतिशत में आया उछाल भी एक वजह है. आंकड़े बताते हैं, 2013 चुनाव के मुकाबले 2018 में महिलाओं का वोट प्रतिशत 4 फीसदी बढ़ा है. इस लिहाज से करीब 20 लाख महिला मतदाताओं ने बीते चुनाव के मुकाबले ज्यादा वोट किए.
वहीं 2013 के मुकाबले 2018 में पुरुषों का वोट प्रतिशत 2 फीसदी से भी कम बढ़ा है. इस लिहाज से करीब 10 लाख पुरुष मतदाताओं ने बीते चुनाव के मुकाबले ज्यादा वोट किए हैं. 2018 में कुल मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 4 लाख थी इनमें से 3 करोड़ 77 लाख लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है. 2013 चुनाव में 4 करोड़ 66 लाख मतदाता थे. इनमें से 3 करोड़ 36 लाख ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. इस लिहाज से बीते चुनाव के मुकाबले इस बार कुल 40 लाख ज्यादा लोगों ने वोट डाले, इनमें महिलाएं अव्वल रहीं.
विधानसभा के इस चुनाव में महिलाओं ने सबसे ज्यादा वोटिंग विंध्य इलाके में की है. विंध्य में विधानसभा की कुल तीस सीटें हैं. वर्तमान में कांग्रेस के कब्जे में सिर्फ बारह सीटें हैं. बसपा दो सीटों पर चुनाव जीती थी. बीजेपी के खाते में सोलह सीटें आईं थीं. पिछले विधानसभा चुनाव में भी विंध्य क्षेत्र में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों की तुलना में ज्यादा रहा था.
इस बार इलाके की दो दर्जन से अधिक सीटों पर महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा है. खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में इस बार दस प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. बसपा के कब्जे वाली रैगांव सीट पर इस चुनाव में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 74.97 फीसदी रहा है. जबकि पिछले चुनाव में 64.62 फीसदी महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
क्या है वजह
ऐसा माना जा रहा है कि शिवराज ने जो चुनाव के ठीक पहले संबल योजना लागू की थी जिसमें महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने वाली कई योजनाएं लागू की हैं. साल 2008 के विधानसभा चुनाव को जीतने में शिवराज सिंह चौहान की मदद लाडली लक्ष्मी योजना ने की थी. जबकि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कन्यादान योजना की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी गई थी.
शिवराज ने अपनी प्रचार सभाओं में भी इसका डर लगातार दिखाया कि कांग्रेस आई तो ये सारी योजनाएं बंद हो जाएंगी. शिवराज कहते हैं कि कांग्रेस को इस लिए गुस्सा आता है क्यों कि मेरे भांजे मुझे आइ लव यू कहते हैं और मैं भी जवाब में आइ लव यू टू बोलता हूं. बीजेपी बेटियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल दिलवायी, किसानों के खेत में पानी पहुंचाया, गड्ढों वाली सडक़ पटवाई, गरीब महिलाओं के खाते में 16 हजार रुपए भेजने की योजना लायी. कांग्रेस आई तो ये सब एक झटके में बंद हो जाएगा.
इस बार भी बीजेपी ने किए कई वादे
1. बारहवीं कक्षा में 75 फीसदी से ज्यादा नंबर लाने पर कॉलेज जाने वाली छात्राओं को सरकार स्कूटी देगी. इन वाहनों का रजिस्ट्रेशन शुल्क भी सरकार देगी. लड़कियों के स्कूलों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन लगाने का भी फैसला.
2. यौन अत्याचार के मामले में सबूत को सुरक्षित रखने और अभियोजन पक्ष को मजबूत करने के लिए राज्य के सभी थानों में फॉरेंसिक परीक्षण किट (रेप किट) मुहैया कराया जाएगा.
3. मां और बच्चों को स्वास्थ्य केंद्रों तक ले जाने के लिए राज्य सरकार जननी एक्सप्रेस 108 एंबुलेंस की संख्या दोगुनी करेगी.
4. गरीब नि:संतान महिलाओं को आईवीएफ द्वारा गर्भधारण के लिए 100 फीसदी आर्थिक मदद दी जाएगी.
5. अगले पांच साल में 20 लाख महिलाओं को आईटी ट्रेंड किया जाएगा.
6. महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को 20 लाख रुपये तक का मुफ्त दीर्घकालिक कर्ज.
हालांकि सब कुछ ठीक भी नहीं
बहरहाल बीजेपी के ये दावा कि महिलाओं के बढ़े मत प्रतिशत के पीछे उनके विकास की बयार है इस पर सवाल भी उठ रहे हैं. भारत सरकार की फ्लैगशिप योजना उज्ज्वला को ही लें तो इसके तहत लिए गए कुल एलपीजी गैस कनेक्शन में से 27 लाख लोगों ने अभी तक दूसरा सिलिंडर ही नहीं खरीदा है. यूपी इलेक्शन में बीजेपी ने इसके भरोसे खूब प्रचार किया था. खासकर बड़ी ग्रामीण आबादी को लगा था कि इससे उनके घरों में भी रसोई गैस के सिलेंडर पहुंच गए. हालांकि कुछ नई रिपोर्ट्स में सामने आया है कि आर्थिक तौर कमज़ोर परिवारों ने थोड़ा-बहुत खर्च कर चूल्हा वगैरह खरीद लिया लेकिन हर बार एकमुश्त करीब एक हजार रुपये तक चुकाना उनके लिए नामुमकिन साबित हो रहा है. कमज़ोर तबके की महिलाओं तक इस योजना से एक सीमित फायदा ही पहुंचा है.
जनधन योजना की भी हालत ऐसी ही है, बैंकों में लंबी-लंबी लाइन लगाकर लो महिलाओं ने इस योजना के तहत अपने बैंक खाते खोले थे. इस योजना में बीमा उनके लिए आकर्षण का सबसे बड़ा कारण था. एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक लगातार ये खाते बंद हो रहे हैं और जो बचे भी हैं, उनमें से 37.36 फीसदी खाते नाॅन ऑपरेशनल या नाॅन ट्रांजेक्शनल हैं. महिलाओं का एक गुस्सा यह भी रहा कि नोटबंदी के दौरान उन्हें वैसे पैसे भी निकालने पड़ गए जो उन्होंने मुसीबत के समय के लिए बचाकर रखे थे. नोटबंदी के दिनों में मजदूर वर्ग से आने वाली कामकाजी महिलाओं को अपनी पगार के लिए काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था.
हर राज्य में बदल रहा है माहौल
-बिहार में महिलाओं की वोटिंग में पिछले चुनाव में 25 फीसदी की वृद्धि हुई. नीतीश कुमार की पिछले साल हुई जीत में इनका अहम योगदान रहा.
-पश्चिम बंगाल में ग्रामीण महिलाओं की वोटिंग में लगभग 22 फीसदी की वृद्धि हुई. ममता बनर्जी की जीत में इनका काफी योगदान रहा.
-यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में भी ग्रामीण महिलाओं की वोटिंग में बहुत वृद्धि हुई. वहां तो पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने वोट डाले.
-कुछ ऐसा ही ट्रेंड तमिलनाडु में दिखा, जहां जयललिता की दोबारा जीत में महिला वोटरों ने निर्णायक भूमिका निभाई.