पाकिस्तान को कंगाल होने से बचा पाएगा सऊदी
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पाकिस्तान की फ़िजाओं में सर्द हवाएं दस्तक देने लगीं हैं लेकिन यहां की राजनीति में मौजूद गर्मी कम होने का जैसे नाम ही नहीं ले रही.
पाकिस्तान में इमरान ख़ान की सरकार बने दो महीने से ज़्यादा का वक़्त हो चुका है और ऐसा लगता है कि उनकी सरकार के शुरुआती 100 दिनों में पाकिस्तान की बदहाली के चर्चे ही सबसे ज़्यादा सुनने को मिलेंगे.
इनमें सबसे ज़्यादा बात हो रही है पाकिस्तान की ख़स्ताहाल अर्थव्यवस्था की.
यहां के लोगों को भी इसका अंदाजा होने लगा है. पाकिस्तान की नई सरकार ने एक मिनी-बजट पेश किया है. इसके बाद से ही तेल, गैस, बिजली, खाना और रोजमर्रा की ज़रूरत वाली तमाम चीज़ों के दाम बढ़ने शुरू हो गए.
पाकिस्तानी रुपए लगभग 30 प्रतिशत नीचे गिर चुका है. इसका सबसे ज़्यादा असर मध्यम और निचली आयवर्ग के लोगों पर पड़ रहा है.
इमरान ख़ान और उनके मंत्री आने वाले मुश्किल हालात के बारे लगातार चर्चाएं कर रहे हैं, इसके साथ ही ये चर्चा भी गरम हैं कि सरकार आने वाले वक़्त में कुछ महत्वपूर्ण कटौतियां कर सकती है.
इमरान के वादे और हक़ीकत
इस बीच लगातार कम होते विदेशी मुद्रा भंडार और लगातार बढ़ते विदेशी कर्ज़ ने प्रधानमंत्री इमरान पर बहुत ज़्यादा दबाव बना दिया है. उनके पास अब अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से कर्ज़ मांगने के अलावा कोई दूसरा रास्ता बाक़ी नहीं रह गया है.
वैसे यह रास्ता भले ही दूसरे नेताओं के लिए आसान रहा हो लेकिन इमरान के लिए यहां भी मुश्किलें खड़ीं हैं.
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपने विपक्षियों पर लगातार यही बोलते हुए हमला किया था कि वे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से कर्ज़ लेते हैं. उन्होंने कहा था कि वे जब सत्ता में आएंगो तो इस ‘भीख के कटोरे’ को फेंक देंगे.
लेकिन अब सत्ता में आने के बाद उन्हें एहसास हो रहा है कि कोई बात बोलना जितना आसान होती है उसे हक़ीक़त में करना उतना ही मुश्किल होता है.
बीती रात प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने टीवी पर पाकिस्तान की आवाम के नाम एक संदेश दिया.
उन्होंने कहा, ”मेरे पाकिस्तानी साथियों, आज मैं आप सभी को एक खुशखबरी सुनाने जा रहा हूं. हम एक मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं. हम भारी कर्ज़ में डूबे हुए हैं. लेकिन ऐसे मुश्किल वक़्त में हम सऊदी अरब को उनकी मदद के लिए शुक्रिया अदा करते हैं, अब हमारे ऊपर दबाव कम हुआ है.”
इस घोषणा ने पाकिस्तान के वित्तीय नीति निर्माताओं को थोड़ी राहत की सांस ज़रूर दी है. लेकिन इसके साथ ही सोशल मीडिया पर इमरान ख़ान की आलोचना भी शुरू हो गई है.
उनके विरोधी उन्हें दोहरा चरित्र रखने वाला और सरकार चलाने में नाकाबिल बता रहे हैं.
सऊदी अरब ने पाकिस्तान को एक साल के लिए 300 करोड़ डॉलर की सहायता देने का वादा किया है. इसके अलावा सऊदी की तरफ से पाकिस्तान को तेल के आयात के लिए 300 करोड़ डॉलर की अलग से मदद दी जाएगी और यह सहायता तीन साल के लिए होगी.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी विज्ञप्ति के अनुसार तीन साल बाद इसका विश्लेषण किया जाएगा.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब सऊदी ने पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निकालने के लिए मदद पहुंचाई हो. पाकिस्तान और सऊदी के बीच सालों पुरानी रणनीतिक साझेदारी रही है. दोनों देशों के बीच कई दशकों से सैन्य, आर्थिक और धार्मिक संबंध रहे हैं.
इस तरह से देखें तो इस्लामाबाद अपने लिए किसी भी प्रकार की मदद के लिए रियाद को सबसे मुफीद मानता है.
हालांकि अभी यह साफ़ नहीं हो पाया है कि अपनी इस मदद के बदले में सऊदी क्या चाहता है. लेकिन जिस मौक़े और वक़्त पर यह मदद पहुंचाई जा रही है वह बेहद अहम है.
इस समय सऊदी पर भी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की मौत के चलते भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ रहा है. पाकिस्तान ऐसे में सऊदी को राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ने से मदद कर सकता है.
इमरान ख़ान ने अपने भाषण में इसका संकेत भी दिया कि पाकिस्तान सऊदी अरब और यमन के बीच चल रहे युद्ध को समाप्त करने के लिए मध्यस्त की भूमिका निभाने की कोशिश करेगा.
ख़ैर, सऊदी की इस उदारता के पीछे कोई भी कारण हो लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी की यह मदद पाकिस्तान की जख़्मी अर्थव्यवस्था के लिए एक अस्थाई उपचार का काम करेगी.
पाकिस्तान के प्रमुख अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर मानते हैं कि सरकार को इस मदद के ज़रिए ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाने की आवश्यकता है.
वे कहते हैं, ”अब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के साथ बातचीत करने वाली स्थिति में है, यह एक छोटी अवधि का फायदा होगा, लेकिन लंबे वक़्त के फायदे के लिए सरकार को एक स्थिरता की ज़रूरत है जिससे वे अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव ला सके, वरना यह थोड़ा-बहुत फ़ायदा भी तुरंत ही खत्म हो जाएगा.”
इस बीच इमरान ख़ान आने वाले कुछ हफ़्तों में मलेशिया और चीन जाने की योजना भी बना रहे हैं ताकि वहां से भी इस तरह की मदद प्राप्त कर सकें.
पाकिस्तान मलेशिया से हर साल 200 करोड़ डॉलर का खाद्य तेल आयात करता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इमरान ख़ान मलेशिया की सरकार से इस आयात में कुछ अलग से छूट प्राप्त करने की कोशिश करेंगे.
वैसे, तमाम मदद के बाद भी पाकिस्तान को आईएमएफ़ के पास बेलआउट पैकेज के लिए तो जाना ही होगा.
अर्थशास्त्री ज़फ़र महमूद बताते हैं, ”सरकार का कहना है कि देश को डिफ़ॉल्ट घोषित होने से बचाने के लिए 1200 करोड़ डॉलर की ज़रूरत है, अगर सऊदी अरब ने 600 करोड़ डॉलर की मदद का वादा किया है तब भी उसे इस संकट से बचने के लिए दिसंबर तक 600 करोड़ डॉलर की ज़रूरत और पड़ेगी.”
ज़फ़र कहते हैं कि सऊदी की घोषणा ने पाकिस्तान को एक अस्थाई मदद ज़रूर पहुंचाई है लेकिन जब तक हम अपनी ढांचागत समस्याओं को दूर नहीं करेंगे तब तक हमारी परेशानियां हमेशा के लिए दूर नहीं किया जाएगा. इसके बिना हम हमेशा ही विदेशी मदद पर निर्भर रहेंगे.
सऊदी से मदद मिलने के बाद इमरान भले ही आईएमएफ़ में पाकिस्तान के लिए पहले के मुकाबले अब थोड़ा आसान समझौता करने में कामयाब हो जाएं लेकिन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह संकट से निकालने के लिए उन्हें एक लंबी रणनीति बनाने की ज़रूरत है. नहीं तो उनके वायदे ज़मीन पर धूल खाने लगेंगे.