प्रत्याशियों के साथ स्टार प्रचारकों के प्रभाव का परिणाम भी तीन को आएगा सामने, भविष्य की रणनीति होगी तय

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की तीन दिसंबर को होने वाली मतगणना को लेकर प्रत्याशी तो जीत-हार का गणित लगा ही रहे हैं, सभी दलों के स्टार प्रचारकों के लिए भी परिणाम महत्वपूर्ण होंगे। उन्होंने जिन-जिन विधानसभा सीटों पर प्रचार किया है, वहां पार्टी प्रत्याशी की हार-जीत उनके लिए महत्वपूर्ण रहेगी। इसी से सामने आएगा कि मध्य प्रदेश में किस दल के कौन से राजनेता ज्यादा प्रभावी हैं।
लगभग पांच माह बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। इसमें पार्टियां अपने-अपने स्टार प्रचारकों का उपयोग विधानसभा चुनाव में उन्हें जनता से मिले प्रतिसाद के आधार पर भी कर सकती हैं। प्रत्याशियों को यह आस है कि स्टार प्रचारकों की सभाओं से उन्हें लाभ मिला होगा।
भाजपा नेताओं ने किया धुंआधार प्रचार
भाजपा की ओर से अकेले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रदेश में 14 जनसभाएं और इंदौर में रोड-शो किया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने धुआंधार प्रचार किया। कांग्रेस से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित कई बड़े नेताओं की सभाएं हुईं।
बसपा अध्यक्ष मायावती ने 10 और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नौ-नौ सभाएं की हैं। स्टार प्रचारकों ने एक विधानसभा सीट ही नहीं, बल्कि आसपास की अन्य सीटों और अंचल को साधने की कोशिश की।
भाजपा ने कार्ययोजना के अनुसार, स्टार प्रचारकों की जनसभाएं कराईं। केंद्रीय नेतृत्व ने अलग-अलग जगह जनसभाएं और रोड-शो कर जनमत अपने पक्ष में करने की कोशिश की। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और 12 केंद्रीय मंत्रियों की सभाएं व रोड-शो हुए। क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को देखते हुए सभाएं आयोजित की गईं। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सभा छिंदवाड़ा के सौंसर में कराई गई। सौंसर से महाराष्ट्र सीमा की दूरी लगभग 60 किमी है।
पीएम मोदी की अधिकांश सभाएं उन जिलों में हुईं, जहां वर्ष 2018 में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर था। उधर, राहुल गांधी ने आदिवासी और ओबीसी बहुल जिलों में ज्यादा ध्यान दिया तो मल्लिकार्जुन खरगे की सभाएं एससी बहुल क्षेत्रों पर केंद्रित रहीं। प्रियंका गांधी वाड्रा ने आदिवासी अंचलों पर ज्यादा ध्यान दिया। प्रियंका की सभाएं और रोड-शो के बाद जनता ने अपना निर्णय भी दे दिया है, जो तीन दिसंबर को सामने आ जाएगा।