महंगाई पर दबाव में आरबीआइ, पांच महीनों तक यही स्थिति रही तो सरकार के सामने देनी पड़ेगी सफाई
नई दिल्ली। महंगाई की दर पिछले चार महीनों से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की तरफ से निर्धारित बैंड (दो प्रतिशत से छह प्रतिशत) से ऊपर जा रही है। अगर यही स्थिति अगले पांच महीनों तक और रहती है तो रिजर्व बैंक को नियम के मुताबिक सरकार को सफाई देनी पड़ सकती है कि वह महंगाई को क्यों काबू में नहीं कर पाया। वैसे मई, 2022 में अचानक ही रेपो रेट में एकमुश्त 0.40 प्रतिशत की वृद्धि कर आरबीआइ ने साफ कर दिया है कि वह अब महंगाई से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है।
हालांकि उसका एक आंतरिक आकलन यह भी कहता है कि उसके कदमों का असर होने में छह से आठ महीने लगेंगे। साथ ही दूसरी बाहरी एजेंसियों का भी आकलन है कि वैश्विक हालात की वजह से महंगाई की चुभन इस बार लंबे समय तक रहेगी।मौद्रिक नीति तय करने की मौजूदा व्यवस्था जून, 1996 से लागू है और अभी तक महंगाई के मोर्चे पर केंद्रीय बैंक को स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं पड़ी है। सूत्र बताते हैं कि ऐसी नौबत आने पर भी आरबीआइ को स्पष्टीकरण देने से कई एतराज नहीं है। उसे यह बताना होगा कि किन वजहों से महंगाई की दर लगातार तीन तिमाहियों तक छह प्रतिशत से ज्यादा रही। दुनिया के तकरीबन सभी विकसित देशों में इस तरह की व्यवस्था है। कुछ देशों में तो महंगाई का लक्ष्य हासिल नहीं होने की स्थिति में केंद्रीय बैंक के गवर्नर को संसद में आकर स्पष्टीकरण देना पड़ता है।
एमपीसी में बनता है महंगाई को काबू में रखने का प्लान
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अध्यक्षता आरबीआइ गवर्नर करते हैं और इस समिति में केंद्रीय बैंक से बाहर के भी तीन सदस्य होते हैं। इनकी नियुक्ति सरकार आरबीआइ के विमर्श से करती है। इस समिति ने पहले पांच वर्षों (2016 से वर्ष 2021) के लिए तय किया था कि भारत में महंगाई की दर चार प्रतिशत (दो प्रतिशत नीचे या दो प्रतिशत ऊपर) रखी जाएगी। वर्ष 2021 में आरबीआइ ने वर्ष 2026 तक के लिए भी यहीं लक्ष्य तय किया है। पहले पांच वर्षों के कार्यकाल पर जारी रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने बताया था कि आरबीआइ उक्त लक्ष्य के मुताबिक महंगाई को थामे रहने में सफल रहा है। जबकि जनवरी, 2022 से लेकर अप्रैल, 2022 तक महंगाई की दर लगातार छह प्रतिशत से ज्यादा रही है। एमपीसी साल में चार बार बैठक करती है और इस निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए कदम उठाती है।