राज्यसभा: 10वें प्रत्याशी की हार-जीत से तय होगा, 2019 में SP-BSP और BJP का गेम-प्लान
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राज्यसभा के लिए 23 मार्च को होने जा रहे चुनावों के मद्देनजर यूपी की 10वीं सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीट के लिए बसपा ने सपा से तालमेल कर पूर्व एमएलए भीमराव अंबेडकर को अपना प्रत्याशी बनाया है. वहीं दूसरी ओर, बीजेपी के लिए अहम इसलिए हो गई है क्योंकि यदि इस सीट से बसपा का प्रत्याशी जीतता है तो 2019 में सपा-बसपा गठबंधन पर मुहर लगनी तय है. बीजेपी यह भी समझती है कि ऐसा होने की स्थिति में उसके लिए बड़ी चुनौती पेश हो सकती है क्योंकि मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सपा-बसपा गठबंधन होने पर बीजेपी को यूपी में 50 सीटों का नुकसान हो सकता है.
यह मामला इसलिए भी रोचक हो गया है क्योंकि बसपा सुप्रीमो ने पहले ही ऐलान किया है कि सपा के साथ उनका तालमेल फिलहाल उपचुनावों और में है. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में तो बसपा अपने वोटबैंक में सपा प्रत्याशी के खाते में ट्रांसफर कराने को सफल रही, जिसके दम पर सपा ने बीजेपी को हराकर जीत दर्ज की. अब राज्यसभा चुनाव में सपा की बारी है कि वह अपने मतों को बसपा के खाते में ट्रांसफर कराकर उसको जिताए. यदि सपा ऐसा करने में कामयाब नहीं रहती है तो बसपा के साथ उसके संभावित गठबंधन पर पेंच फंस सकता है. बीजेपी की रणनीति भी फिलहाल इस संभावित गठबंधन को रोकने के लिए इसीलिए राज्यसभा में बसपा प्रत्याशी को हराने की है.
वोटों का गणित
इसी कड़ी में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यूपी में सहयोगी सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी(सुभासपा) के नेता ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात कर उनको मना लिया है. योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर पिछले कुछ समय से बीजेपी से नाराज चल रहे थे और उन्होंने राज्यसभा चुनावों में बगावती तेवर अख्तियार कर लिए थे. इसलिए मौके की गंभीरता को देखते हुए अमित शाह ने राजभर से मुलाकात में देरी नहीं की. अपना दल ने पहले ही बीजेपी को समर्थन का ऐलान कर रखा है. इस प्रकार बीजेपी ने अपने 324 वोटों को अपने पाले में रखने की पूरी व्यवस्था कर ली है.
सपा-बसपा को टेंशन
राज्य की 31 राज्यसभा सीटों में से 10 पर चुनाव होने हैं. इनमें से आठ बीजेपी और एक सपा के खाते में जानी तय है. 10वीं सीट के लिए बसपा ने सपा से तालमेल कर अपने उम्मीदवार को उतारा है. राज्यसभा की एक सीट में जीत हासिल करने के लिए 37 वोट की दरकार है. बसपा के 19 और सपा के 47 विधायक हैं. सपा के एक प्रत्याशी के जीतने के बाद उसके पास 10 वोट अतिरिक्त होंगे. इसके अलावा कांग्रेस के सात और रालोद के एक वोट का भी समर्थन बसपा को मिलेगा. इस प्रकार बसपा के किसी तरह 37 वोट हो रहे हैं लेकिन यहीं पर सपा नेता शिवपाल यादव और नरेश अग्रवाल की भूमिका अहम हो जाती है.
इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि बीजेपी के आठ प्रत्याशी जीतने के बाद उसके पास 28 वोट अतिरिक्त होंगे. इसलिए अपने नौवें प्रत्याशी को जिताने के लिए उसको महज नौ वोटों की दरकार है. इसलिए सपा और बसपा के ऐसे विधायकों पर भी बीजेपी की नजर है जो अगले चुनाव में उसके टिकट पर चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं. बीजेपी को इस कड़ी में तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिल चुका है. इसके अलावा का भी उसको समर्थन मिल चुका है. यह इसलिए दिलचस्प है क्योंकि निषाद पार्टी के संस्थापक के पुत्र प्रवीण निषाद गोरखपुर से सपा के टिकट पर लोकसभा उपचुनाव में जीते हैं.
नरेश अग्रवाल
सपा से राज्यसभा टिकट नहीं मिलने से नाराज नरेश अग्रवाल ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. सूत्रों के मुताबिक इसकी राजनीतिक कीमत के रूप में उन्होंने बीजेपी को आश्वस्त किया है कि उनका बेटा और हरदोई से सपा विधायक नितिन अग्रवाल बीजेपी के पक्ष में वोट करेगा. यदि ऐसा कोई एक वोट भी कम हो जाता है तो बसपा का उम्मीदवार राज्यसभा नहीं पहुंच पाएगा.
शिवपाल यादव
सपा में शिवपाल यादव गुट हाशिए पर है. सपा नेतृत्व के साथ उनके रिश्तों में खटास जगजाहिर है. इसके अलावा बसपा के साथ शिवपाल के रिश्ते 1995 के गेस्टहाउस कांड के बाद कटु रहे हैं. ऐसे में उनके गुट की बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.