चीनी चाल की गिरफ्त में मालदीव, जानें -भारत के लिए मायने

हिंद महासागर में कई द्वीप समूहों वाला देश है मालदीव। मालदीव का जिक्र होते ही वहां के अटॉल जेहन में घूमने लगते हैं। हिंद महासागर की लहरें वहां की चट्टानों पर चोट करती हैं और उसकी आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती है। वो आवाज किसी के कान को सुहाती है तो किसी को डराती है।सोमवार को राष्ट्रपति अब्दुल यामीन ने आपातकाल के रूप में लोकतंत्र के चेहरे पर हथौड़ा मारा। 15 दिनों की आपातकाल की घोषणा के बाद पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत दो जजों को गिरफ्तार किया गया। अब्दुल यामीन के इस ऐलान के बाद माले की सड़कों पर उतर चुके हैं। इस बीच भारत सरकार ने एडवाइजरी जारी कर भारतीय नागरिकों को मालदीव की यात्रा पर न जाने की सलाह दी है। सवाल ये है कि मालदीव में आपातकाल लगाने के पीछे क्या वजह है। क्या चीन, करीब सवा चार लाख आबादी वाले देश पर परोक्ष तौर पर कब्जा जमाने की फिराक में है। क्या ये भारत के लिए किसी संभावित खतरे की तरह है। इसे जानने और समझने से पहले मालदीव के इतिहास और उन चेहरों को जानने की जरूरत है जो इस पूरे घटनाक्रम में या तो नायक हैं या खलनायक।
मौमून अब्दुल गयूम- 30 वर्षों तक मालदीव के शासक। 2008 में लोकतंत्र की बहाली की। मालदीव में हुए चुनाव में मोहम्मद नशीद के हाथ में सत्ता आई।
मोहम्मद नशीद- 2008- 2012 तक सत्ता पर काबिज। लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम में अब्दुल यामीन ने गद्दी संभाली। नशीद ने आरोप लगाया था कि बंदूक के दम पर उन्हें सत्ता से हटाया गया। मौजूदा राष्ट्रपति यामीन ने आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में नशीद पर केस चलाया। नशीद को 13 वर्ष की सजा हुई। 2015 में तबीयत खराब होने के बाद उन्हें इंग्लैंड जाने की इजाजत मिली। फिलहाल वो श्रीलंका में रह रहे हैं।
अब्दुल यामीन- मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के चचेरे भाई हैं। यामीन के खिलाफ अब्दुल गयूम आंदोलन चलाते रहे हैं। हाल ही में मालदीव सुप्रीम कोर्ट ने नशीद समेत 9 लोगों को गिरफ्तारी को गैर कानूनी बताते हुए उन लोगों की रिहाई के आदेश दिए थे। इसका अर्थ ये था कि अब्दुल यामीन अल्पमत में आ जाते और उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ती। लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बता कर न केवल जजों को गिरफ्तार किया बल्कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को भी गिरफ्तार किया।
भारत और मालदीव के संबंध
मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं। लेकिन 2013 में अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति बनने के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। करीब सवा 4 लाख आबादी वाला यह छोटा सा देश भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और यह अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से रणनीतिक लिहाज से काफी अहम है। मालदीव रणनीतिक रूप से कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इतनी कम आबादी वाले इस देश में चीन जबरदस्त अंदाज में निवेश कर रहा है। चीन की महत्वाकांक्षा मालदीव में सैन्य बेस बनाने की है। मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को चीन का करीबी माना जाता है।मालदीव के विदेश मंत्री और वहां के राष्ट्रपति के विशेष दूत मोहम्मद आसिम 10-12 जनवरी के बीच भारत की यात्रा पर थे। पाकिस्तान के बाद मालदीव दक्षिण एशिया में दूसरा देश बन गया, जिसने चीन के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट किया। भारत भी मालदीव के साथ इस तरह के अग्रीमेंट की उम्मीद कर रहा था। मालदीव में चीन के कई बड़े प्रॉजेक्ट चल रहे हैं और उसके कर्ज का तीन चौथाई हिस्सा चीन के हाथों मिला है।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। मालदीव में तीन स्थानीय काउंसलर्स को भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा से मिलने पर सस्पेंड कर दिए जाने की घटना भी सामने आई थी। इसके साथ ही वहां एक सरकार समर्थक अखबार ने नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी और भारत को दुश्मन देश बताया था। तब मालदीव के राष्ट्रपति ने कहा था कि यह सरकार का नजरिया नहीं है और वह भारत को सबसे करीबी सहयोगी मानते हैं।
चीन की तरफ झुका मालदीव
हाल के वर्षों में मालदीव का भारत के बनिस्पत चीन की तरफ झुकाव बढ़ रहा है। 2012 में हुए सैन्य तख्तापलट में मालदीव के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। उसके बाद चीन ने मालदीव को अपने पाले में करने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाई। चीन ने एक तरह से मालदीव को कर्ज के जाल में फंसा लिया है। मालदीव के लिए कुल अंतरराष्ट्रीय कर्ज में करीब दो-तिहाई हिस्सेदारी तो अकेले चीन की है। 2011 तक मालदीव में जिस चीन का दूतावास तक नहीं था, वह अब वहां की घरेलू राजनीति में प्रभावी दखल रखता है। मालदीव अब चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशटिव (BRI) का हिस्सा है। पिछले साल चीन और मालदीव ने फ्री ट्रेड अग्रीमेंट (FTA) पर दस्तखत किए थे। चीन के साथ FTA समझौते को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद ने देश की संप्रभुता के लिए खतरा बताया था।
माले के इंटरनेशनल एयरपोर्ट का मामला भी मालदीव में चीन के बढ़ते दखल को बताता है। माले एयरपोर्ट को बनाने का ठेका एक भारतीय कंपनी को मिला था लेकिन वह ठेका रद्द करके चीन की एक कंपनी को दे दिया गया। अभी हाल ही में मालदीव के एक सरकार समर्थक अखबार माने जानेवाले अखबार ने चीन को मालदीव का नया बेस्ट फ्रेंड और भारत को ‘शत्रु देश’ बताया था।
जानकार की राय
ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि मालदीव में फैले संकट के पीछे कहीं न कहीं चीन और उसका वहां पर बढ़ता प्रभुत्व ही है। मालदीव के बिगड़े हालात भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं, लिहाजा भारत को इसका समाधान निकालते हुए काफी सावधानी बरतनी होगी और सतक्र रहना होगा। उनके मुताबिक यामीन की सोच चीन को लेकर बेहद सकारात्मक है और उनका मानना है कि यदि इस मामले में दूसरे देश कुछ कदम भी उठाते हैं तो चीन के साथ की वजह से उन्हें कुछ नहीं होगा। यहां पर यह बात ध्यान में रखने वाली है कि मालदीव और चीन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किया हुआ है। लिहाजा चीन जरूर चाहेगा कि वहां पर यामीन सरकार बनी रहे। लेकिन इस लड़ाई में यदि संवैधानिक संस्थाएं ही नहीं रहेंगी तो जाहिर तौर पर इसका नुकसान मालदीव को ही भुगतना होगा। यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि भारत इस समस्या का हल किस तरह से निकालता है। उनके मुताबिक मालदीव की स्थिति भारत के लिहाज से काफी अहम है, लिहाजा यहां पर भारत को चौकन्ना रहते हुए और चीन को ध्यान में रखते हुए ही कदम उठाने होंगे।
मालदीव के साथ हमेशा खड़ा रहा भारत
मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने व्यापारिक और सांस्कृति संबंध रहे हैं। जब-जब मालदीव पर कोई संकट आया है तो भारत ने बिना कोई देर किए सबसे पहले मदद की है। 1988 में जब मालदीव में तख्तापलट की कोशिश को भारत ने नाकाम किया था। तब अब्दुल्ला लुतूफी नाम के विद्रोही नेता ने श्री लंकाई विद्रोहियों की मदद से तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सत्ता पलटने की कोशिश की थी। इस संकट से निपटने के लिए मालदीव ने भारत और अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की गुहार लगाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तत्काल भारतीय वायु सेना को मालदीव की मदद का निर्देश दिया। भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन में सारे विद्रोही या तो ढेर कर दिए गए या फिर गिरफ्तार। भारत की इस कार्रवाई की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तारीफ हुई। भारतीय वायुसेना के उस अभियान को ‘ऑपरेशन कैक्टस’ के नाम से जाना जाता है।
दिसंबर 2014 में माले में पानी आपूर्ति कंपनी के जेनरेटर कंट्रोल पैनल में भीषण आग लग गई थी। इस वजह से पूरे देश में पेयजल का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया। मालदीव सरकार ने भारत सरकार से मदद मांगी। भारत ने तत्काल मदद करते हुए आईएनएस सुकन्या को पानी के साथ माले के लिए रवाना किया। इसके अलावा आईएनएस दीपक को 1000 टन पानी के साथ माले भेजा गया। भारतीय वायुसेना ने भी अपने एयरक्राफ्ट्स के जरिए सैकड़ों टन पानी माले पहुंचाया था। भारत के इस अभियान को ‘ऑपरेशन नीर’ नाम से जाना जाता है