ड्रैगन के जाल में फंसे मालदीव की हो गई इतनी हिम्मत भारतीयों को कर रहा ‘ना’
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नई दिल्ली । ड्रेगन के चंगुल में फंसा मालदीव अब भारत से वर्षों की दोस्ती का सिलसिला वहां मौजूद भारतीयों को आंख दिखाकर दे रहा है। आलम ये हो गया है कि वह अब भारतीयों को नौकरी के लिए वर्क परमिट और बिजनेस वीजा जारी देने से भी इंकार करने लग गया है। इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इसकी वजह से कामगारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मालदीव में काम करने वाले लोग और वो लोग जो कुछ समय बिताने के लिए भारत वापस आए थे वे अब मालदीव वापस नहीं जा पा रहे हैं। भारत ने हालांकि पिछले दिनों मालदीव के इस बेहुदा रवैये को लेकर कूटनीतिक तरीके से आपत्ति जताई थी, लेकिन बावजूद इसके मालदीव सुधरने को तैयार नहीं हो रहा है।
मालदीव के पीछे चीन का शातिरपन
मालदीव दरअसल ये जो कुछ कर रहा है उसके पीछे कोई और नहीं बल्कि चीन का शातिरपन काम कर रहा है। यही वजह है कि कुछ समय पहले तक पानी के लिए तरसने वाला मालदीव इस तरह की घटिया हरकतें करने पर उतारु हो गया है। इतना ही नहीं भारत की आपत्ति के बावजूद मालदीव की कई कंपनियों ने अपने विज्ञापनों में यहां तक साफ कर दिया है कि उनके यहां भारतीयों को आवेदन करने की जरूरत नहीं है। मालदीव के इस बदले रुख ने भारत को चिंता में डाल दिया है। आपको बता दें कि मालदीव की मौजूदा सरकार पूरी तरह से चीन के दिशा निर्देशों पर काम कर रही है। इसकी एक सीधी वजह ये भी है कि चीन मालदीव को अपने चंगुल में फंसाकर भारत पर कड़ी नजर रखना चाहता है।
भारतवापस लेगा हेलीकॉप्टर
संबंधों में आए तनाव का ही नतीजा है कि अब भारत वर्ष 2013 में मालदीव को दिए दो ध्रुव हेलीकॉप्टरों को भी वापस ले रहा है। यह हेलीकॉप्टर वर्ष 2013 में एक समझौते के तहत दिए गए थे। इनमें से एक को कोस्ट गार्ड तो दूसरे को भारतीय नौसेना इस्तेमाल में लाती है। इतना ही नहीं आपको बता दें कि भारतीय नौसेना के 28 जवानों का दल फिलहाल में मालदीव में ही है जो वापस आने के आदेश का इंतजार कर रहा है। इन जवानों का वीजा अवधि 30 जून को समाप्त हो चुकी है।
मालदीव की भूगौलिक स्थिति अहम
यहां आपको ये भी बताना जरूरी होगा कि मालदीव की भूगौलिक स्थिति भारत के लिए न सिर्फ रणनीतिक तौर पर काफी अहम है बल्कि कूटनीतिक तौर पर भी ये काफी मायने रखती है। यही वजह है कि नेपाल, पाकिस्तान, बर्मा, बांग्लादेश और श्रीलंका को अपने जाल में फंसाने के बाद चीन मालदीव को अपने वश में करना चाहता है। यहां से भारतीय नौसेना के जहाजों और पनडुब्बियों पर करीब से नजर रख सकता है। मालदीव के इस रवैये के बाद से ही सरकार कूटनीतिक स्तर पर वहां लगातार संपर्क बनाए हुए है।
मालदीव में होने हैं राष्ट्रपति चुनाव
आपको बता दें कि मालदीव में इसी वर्ष सितंबर में राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं। मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन जहां चीन के काफी करीब हैं वहीं पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद भारत के काफी करीब रहे हैं। ऐसे में भारत की निगाह मालदीव में चुनाव पर भी है। मौजूदा सरकार के साथ भारत के संबंधों में आई तल्खी के चलते सरकार की नजर वहां के राजनीतिक घटनाक्रम पर बनी हुई है। भारत सरकार कुछ दूसरे देशों के साथ मिलकर भी मालदीव पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि मालदीव में वर्ष 2014 में पानी का संकट आया था तब भारत ही था जिसने सबसे पहले उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया था और उस वक्त भारत सरकार ने हजारों लीटर पानी मालदीव को मुहैया करवाया था। मालदीव में उस वक्त आए इस संकट की वजह वहां के वाटर प्लांट में लगी भयंकर आग थी जिसकी वजह देश की राजधानी भी प्यासी हो गई थी। लेकिन मालदीव अब भारत की इस दोस्ती को भूलकर बैर बढ़ाने पर उतारु हो गया है।
यामीन सरकार के बाद से है संबंधों में तनाव
गौरतलब है कि मालदीव में यामीन सरकार के आने के बाद से ही भारत के साथ उसके संबंधों में तनाव आया है। इसी वर्ष फरवरी में मालदीव की सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करके जेलों में बंद विरोधी दलों के राजनीतिज्ञों को रिहा करने को कहा था। भारत ने मालदीव से इस आदेश का पालन करने को कहा था। मालदीव में आपात काल लागू करने के घटनाक्रम पर भी भारत ने अपनी कूटनीतिक आपत्ति जताई थी। लेकिन मालदीव सरकार ने न तो कोर्ट के आदेश का ही पालन किया और न ही विश्व बिरादरी की ही कोई इज्जत की। ऐसा तब है कि जब 1965 में आजादी के बाद भारत मालदीव को मान्यता देने वाले देशों में शामिल था। इसके बाद भारत ने अपने संबंधों में प्रगाढ़ता लाते हुए वर्ष 1972 में राजधानी माले में अपना दूतावास भी स्थापित किया था। आपको बता दें कि मालदीव में करीब 30 हजार भारतीय रहते हैं। मालदीव आज वर्ष 1988 के उस वाकये को भी भूल चुका है जब भारत ने ही उसपर कब्जा होने से बचाया था। इसके लिए चलाए गए ‘ आपरेशन कैक्टस’ को अभी तक विदेशी धरती पर भारत का सबसे सफल ऑपरेशन माना जाता है। इसके अलावा भारत का वहां के विकास कार्यों में काफी योगदान रहा है।
भारत का मालदीव में रहा है प्रभाव
मालदीव के एक स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित होने के बाद से ही भारत का यहां प्रभाव रहा है। मगर हालिया समय में यहां तस्वीर बदली है और चीन का दखल बढ़ा है। चीन पहले ही श्रीलंका, पाकिस्तान (ग्वादर) और ईरान में अपनी पैठ बना रहा है। ऐसे में सामरिक दृष्टि से महत्वूपर्ण 1200 द्वीपों वाले इस देश में भी चीन के दखल ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। दूसरी तरफ मालदीव की कारगुजारियों पर यदि नजर डालें तो पता चलता है कि सीरिया में मौजूद विदेश आतंकियों में सबसे ज्यादा संख्या इसी देश के नागरिकों की है। इसके अलावा उड़ी हमले के बाद पाक में सार्क बैठक का बहिष्कार करने के फैसले पर सिर्फ मालदीव ने आपत्ति जताई थी। यह सब कुछ भूलकर अब मालदीव पूरी तरह से चीन की गोद में बैठ चुका है।
यहां कब्जे की चीन की ये है चाल
मौजूदा समय में चीन वहां पर फ्रेंडशिप ब्रिज तैयार कर रहा है। इसके अलावा वह वहां पर बंदरगाहों का विकास भी करने में लगा है जो भविष्य में उसके काम आने वाले हैं। इसके अलावा अस्पताल का निर्माण भी चीन यहां पर कर रहा है। वहीं चीन मालदीव को ऋण देकर भी अपने साथ मिला रहा है। यामीन सरकार के बाद से ही यहां पर चीनी नौसेना के जहाजों की आवाजाही में इजाफा साफतौर पर दिखाई देता है। यहां के हवाई अड्डे से माले तक सड़क निर्माण करने के अलावा चीन यहां के एयरपोर्ट को भी अत्याधुनिक बनाने में लगा है। इतना ही नहीं वर्ष 2009 में चीन ने यहां पर अपना दूतावास खोला था, जबकि भारत यहां पर पहले से ही मौजूद है। मालदीव सार्क (दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन) का सदस्य भी है। भारत के लिए इस क्षेत्र में अपना नेतृत्व बनाए रखने के लिए उससे बनाकर रखना भी अहम है।