दिग्विजय के भाई ने कहा- तबादलों में बिजी हैं हमारे मंत्री, दिग्विजय-सिंधिया को नहीं बनाना चाहिए कांग्रेस अध्यक्ष
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भोपाल. मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने अपनी ही सरकार पर निशाना साधा है। पत्रिका से बात करते हुए लक्ष्मण सिंह ने कहा- कांग्रेस का अब वो समय चला गया है जब कांग्रेस का एकछत्र राज था। अब हमको अपनी कार्यप्रणाली बदलनी पड़ेगी हमारा बूथ मजबूत तो हम मजबूत, अगर हमारा कार्यकर्ता और बूथ कमजोर है या निराश है फिर नतीजे ऐसे ही आएंगे। कार्यकर्ता का उत्साह बड़े नेता को और उनकी कार्यप्रणाली को देखकर बढ़ता है। लक्ष्मण सिंह ने अपने भाई दिग्विजय सिंह ( Digvijaya Singh ) पर भी हमला बोला है।
तबादलों में बिजी हैं मंत्री
लक्ष्मण सिंह ने कहा- दुर्भाग्यवश जो हमारे मंत्री हैं वह यह तबादले व्यस्त हैं। उनकी धारणा है कि मेरा अफसर होना चाहिए या हमारी पार्टी से संबंधित अफसर होना चाहिए, लेकिन अफसर की क्या निष्ठा है, क्या सोच है यह उसका निजी मामला है। आपकी सरकार बदलने से वो विचारधारा नहीं बदलेगा, लेकिन हां शासकीय योजनाओं का क्रियान्वयन उसके द्वारा होना चाहिए, अगर वह करता है तो ठीक है तो उसकी निष्ठा कहीं भी हो उससे हमें मतलब नहीं होना चाहिए। अगर हमारी योजना को वो नीचे तक ले जा रहा है तो वो बहुत अच्छा अधिकारी है।
दिग्विजय और सिंधिया नहीं बनें राष्ट्रीय अध्यक्ष
कांग्रेस का अध्यक्ष कौन हो इस सवाल का जवाब देते हुए लक्ष्मण सिंह ने कहा- दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ना सिंधिया जी बनना चाहते हैं और न ही दिग्विजय सिंह जी।
लोकसभा में हार का कारण कार्यकर्ताओं में निराशा
लक्ष्मण सिंह ने कहा कि लोकसभा में हार का कारण कार्यकर्ताओं में निराशा है। वहीं, उन्होंने कहा कि टिकट का जो चयन हुआ उसमें हमने बहुत बड़ी गलती की, और फिर मैं यह कहूंगा कि यह चयन नीचे लोगों से पूछ कर नहीं हुआ दिल्ली में बंद कमरे में हुआ, बंद कमरे के जितने फैसले हैं अब वो काम नहीं करेंगे, यह फैसले कार्यकर्ताओं पर छोड़ दो।
इलाका अब जनता का है
इलाका किसी का नहीं होता है इलाका तो जनता का होता है हमारा क्या है, और क्षत्रपों का नतीजा हमारे सामने है, न ग्वालियर चंबल में आए, न सिंधिया जी जीते, न भाई साहब ( दिग्विजय सिंह ) जीत पाए, कोई नहीं जीत पाया क्योंकि ये क्षत्रप का समय नहीं है, आप कार्यकर्ताओं की भावनाओं से अवगत होइए उनसे मिलिए उनसे पूछिए और फैसला उन पर छोड़ दीजिए और आगे आपको आपके काम करने की शैली बदल नहीं पड़ेगी तभी जाकर कुछ अच्छे नतीजा आएंगे।