डिजिटल मीडिया में 26 फीसद एफडीआई मंजूरी का DNPA ने किया स्वागत

नई दिल्ली । डिजिटल मीडिया संगठनों ने डिजिटल न्यूज संस्थाओं के लिए 26 फीसद एफडीआई की मंजूरी के सरकार के फैसले का स्वागत किया है। डिजिटिल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने कहा कि सरकार के इस फैसले से प्रड्यूसर और एग्रीगेटर समेत सभी तरह की न्यूज कंपनियों के साथ एक जैसा व्यवहार होगा। इस फैसले से डिजिटल मीडिया से जुड़े नीतिगत फैसले लेने में मदद मिलेगी, क्योंकि उन फैसलों से निकलने वाले नतीजों के प्रति वे आश्वस्त हो सकेंगे।
डिजिटिल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) के चेयरमैन पवन अग्रवाल ने कहा, ‘डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए एफडीआई की सीमा को 26 फीसद करने का सरकार का फैसला भारतीय न्यूज पब्लिशर्स और न्यूज एग्रीगेटर्स के लिए सामान मौके उपलब्ध कराएगा।’ आपको बता दें कि DNPA के 10 फाउंडिंग मेंबर हैं, जिनमें इंग्लिश, हिंदी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं की दिग्गज न्यूज मीडिया कंपनियां शामिल हैं।
जागरण न्यू मीडिया के सीईओ और डिजिटल न्यूज पब्लिशर एसोसिएशन (DNPA) के सदस्य भरत गुप्ता ने कहा, ‘डिजिटल न्यूज और स्ट्रीमिंग कंपनियों में 26 फीसद एफडीआई को अनुमति देने की सरकार की घोषणा एक स्वागतयोग्य कदम है। यह कदम भारतीय पब्लिशरों को तथ्यपरक और विश्वसनीय कंटेंट पब्लिश करने में मजबूती देगा। साथ ही, उन्हें इंटरनेट ऑडियंस के बीच अपने ब्रांड के प्रति भरोसा और विश्वसनीयता बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।’
बता दें कि भारत में डेली हंट, इनशॉर्ट्स, हेलो, यूसी न्यूज और न्यूजडॉग जैसे न्यूज एग्रीगेटर्स काम कर रहे हैं। इनके पास भारतीय न्यूज पब्लिशरों की तुलना में ऑडियंस तक ज्यादा पहुंच है। अस्पष्ट कानून होने की वजह से इन्हें काफी मात्रा में विदेशी निवेश (खासकर चीन से) हासिल होता है।
ये न्यूज एग्रीगेटर्स यूजर के लिए सिंगल फीड में कई सारे स्रोतों से न्यूज आर्टिकल ‘सोर्स’ या ‘लिंक’ करते हैं। ये अक्सर हजारों कंटेंट प्रोवाइडर्स के कंटेंट का इस्तेमाल करते हुए तय करते हैं कि कंज्यूमर्स तक कौन से आर्टिकल प्रमोट होने हैं। कई मामलों में ये एग्रीगेटर्स एडिटर पर भरोसा नहीं करते और एलॉगरिद्म के आधार पर ये तय करते हैं कि किस आर्टिकल को शोकेस करना है। ऐसे में गलत सूचना और असत्यापित समाचार प्रचार का खतरा भी खड़ा होता है।
ये न्यूज एग्रीगेटर्स टेक्स्ट, इमेज और वीडियो तमाम तरह के कंटेंट सोर्स या लिंक कर रहे हैं। ये हार्ड न्यूज जैसे पॉलिटिक्स, नेशनल सिक्यॉरिटी, बिजनेस, इकॉनमी के साथ सॉफ्ट एरिया जैसे लाइफस्टाइल और एंटरटेमेंट सेगमेंट को भी कवर करते हैं। अब ये काफी तेजी से हाइपरलोकल कंटेंट कवरेज पर भी फोकस कर रहे हैं और इनका लक्ष्य भारत के छोटे शहरों और क्षेत्रीय भाषाओं में भी पहुंच बनाने का है। इस तरह से ये एग्रीगेटर्स सीधे तौर पर लोकल और नेशनल पब्लिशर्स के साथ प्रतिस्पर्धा में हैं और यही वजह है कि एफडीआई की सीमा में समानता की जरूरत पड़ी है।
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) के प्रेसीडेंट डॉक्टर सुभो रे ने भी इस कदम का स्वागत किया है। इससे पहले घरेलू प्रिंट मीडिया कंपनियां भी सरकार के इस फैसले पर खुशी जाहिर कर चुकी हैं।