Maharashtra Politics: जब सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस, शिवसेना संग कमल खिलने को हुआ बेकरार
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नई दिल्ली । 1990 का वर्ष महाराष्ट्र की सियासत के लिए काफी अहम है। इसके बाद से इस प्रदेश में भी कांग्रेस का वर्चस्व खत्म होने की शुरुआत हुई। यहां की राजनीति में शिवसेना और भाजपा का दखल बढ़ना शुरू हुआ। 1990 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बात के तस्दीक करते हैं। इस चुनाव में इस मिथक का खात्मा हुआ कि यहां केवल कांग्रेस का ही राज हो सकता है। यह अंतिम चुनाव था, जब यहां सिंगल पार्टी कांग्रेस ने सरकार बनाई थी।
वर्ष 1990 विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का वर्चस्व घटा
1989 में पहली बार शिवसेना और भाजपा ने लोकसभा चुनाव में पहली बार गठबंधन किया था। इसके अलावा दोनों दलों ने मिलकर विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन बनाए रखने का फैसला लिया था। वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा ने बराबर के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे। इस चुनाव में शिवसेना को 52 सीटें पर जीत दर्ज की। भाजपा की झोली में 42 सीटें आई थी। इस दौरान कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही। उस वक्त राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व नहीं था। वर्ष 1999 में शरद यादव कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई।
इस चुनाव में कांग्रेस ने शरद पवार के नेतृत्व में 141 सीटों पर जीत हुई थी। इस चुनाव में 12 निर्दलीय भी विजयी रहे। निर्दलीय विधायकों की मदद से राज्य में शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद से यहां कांग्रेस का वर्चस्व खत्म हो गया। 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां किसी दल को बहुमत नहीं मिला।
1995 के विधानसभा चुनाव में राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला
1995 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद हिंदुत्व की लहर पूरे देश में थी। इस बार भी प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना मिलकर चुनाव मैदान में उतरे। इस बार कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा । विधानसभा चुनाव में शिवसेना सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। 73 सीटों पर शिवसेना ने विजय हासिल किया था। दूसरे नंबर पर भाजपा थी। 65 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा दूसरे स्थान पर थी। शिवसेना और भाजपा ने मिलकर सरकार का गठन किया। शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। भाजपा के गोपीनाथ मुंडे को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव में कमल ने खिलाया गुल
वर्ष 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव काफी अहम था। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के खिलाफ भाजपा और शिवसेना का गठबंधन यहां की सियासत में एक नया अध्याय जोड़ने को तैयार था। महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा की झोली में 122 सीटें गई। महाराष्ट्र में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, लेकिन सरकार बनाने के जादुई आंकड़े से वह अभी काफी दूर दिखाई दे रही है। इस चुनाव में शिवसेना ने 63 सीटों पर पर जीत हासिल करके दूसरे नंबर की पार्टी बनीं। 42 विधायकों के साथ कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी थी। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 41 सीटों पर बाजी मारी है। प्रदेश में भाजपा और शिवेसना ने मिलकर सरकार का गठन किया। उस वक्त भाजपा ने शिवेसना की सारी शर्तों को मान लिया था। उस वक्त भी शिवसेना की इच्छा थी कि मुख्यमंत्री आधे-आधे समय के लिए बनें, लेकिन भाजपा ने इस मांग को खारिज कर दिया था।