कहीं चांदी के चमचे तो, कहीं चमचों की चांदी..
कहीं चांदी के चमचे तो, कहीं चमचों की चांदी..
भी सुनते उसी की है, जिसकी जेब में है गांधी!
पुराने समय में राजा के दरबार में चाटुकार और भाट होते थे, चाटुकार राजा के हर अच्छे बुरे काम में प्रशंसा करते थे!तारीफ करते थे और तारीफों के पुल में अपना जीवन यापन करते थे, यहां तक कि राजा की प्रशंसा कर राजा का प्रिय बनने की कला भी चाटुकारिता से आती थी!
राजा भी ऐसे दरबारियों से अक्सर खुश हुआ करते थे, उन्हें आभूषण और पारितोषिक दिया करते थे, चाहे वो राजा मीर हो या अकबर महान!
लेकिन चाटुकारिता को पहचानने के लिए कुछ राज्यों में एक अलग तरह की कला होती थी, स्वामी राजा अपने नगर-नगर, गांव-गांव जाकर भ्रमण कर मुख्य पड़ताल करते थे और उन चाटूकारों की सच्चाई जानने का भी प्रयास करते थे, लेकिन जबसे जमाना डिजिटल हुआ है, चाटुकारिता का चरण भी बदल गया है,
अब चमचे चाटुकारिता गांव-नगर जाकर, गीत गाकर, प्रशंसा कर या तारीफ कर नहीं करते बल्कि सोशल मीडिया पर समाचार पत्र पत्रिका या लेख न्यूज़ कैप्सूल के माध्यम से ब्रांडिंग करते हैं! पब्लिकेशन के जरिए तारीफ करते हैं स्मारिका निकालते हैं, किताबें तक छाप देते हैं! पब्लिक रिलेशन के नाम पर लाभ पहुंचाते हैं और अपना काम निकलवाते हैं!
इसी तरह से डिजिटल चमचे भी तकनीकी रूप से चाटुकारिता कर चमकते हैं या यूं कहें वह तत्पर रहते हैं चरण मक्खन चाटने को..
वैसे तो एक ग्रहणी की रसोई में कई तरह के चमचे होते हैं छोटा-बड़ा चमचा, रबड़ी बनाने का चमचा आदि!
रसोई में इन चमचों की उपयोगिता एक ग्रहणी बेहतर समझती है.
उसी तरह समाज में भी तरह-तरह के उपयोगिता के हिसाब से चमचों का सामना हो सकता है, रसोई में जिस तरह से सब्जी बनाने वाले, मीठा परोसने वाले, चाय छानने वाले, खाना परोसने का, भाजी मिलाने का, हलवा मिक्स करने का चमचा होता है.
उसी तरह चमचों के भी चमचे होते हैं, इस बात पर आप कुछ इस तरह यकीन कर सकते हैं कि जिस तरह से एक अच्छे रसोई में अच्छे चमचे होने से खाने बनाने में क्वालिटी आती है, उसी तरह इसके विपरीत समाज में चमचों की संख्या बढ़ जाने से समाज पथभ्रष्ट हो जाता है!
आज के चमचों की खासियत यह है कि समाज में अपना बर्तन स्वयं ढूंढते हैं, उसे पहले अच्छी तरह से देखते हैं और पड़ताल करते है कि उनकी उपयोगिता क्या है? चमचे ही सुनिश्चित करते हैं उनका मनपसंद बर्तन कौन होगा, जिसे वह समय आने पर खाली कर ले! यह चमचे उनके पेंदे में जोक बनकर चिपक जाते हैं! आज के चतुर चालाक चमचे ऐसे बर्तन ढूंढते हैं जिनमें इनकी पांचों उंगलियां घी में रहे और दूध मलाई मज़े से खाएं!
चरण चुंबन में इनकी बहुत श्रद्धा होती है, चमचे आपको हर जगह मिलेंगे, दफ्तर हो, व्यापार हो, सरकार हो, सरकारी कार्यालय हो या कम समय की मित्रता हो!
समाज का कोई कोना नहीं, जहां चमचे अपनी उपस्थिति ना दें! संस्था हो या संस्थान हो या मोटी कमाई करने वाले सरकारी दफ्तर इनका प्रमुख स्थान होता है! कमाई करने वाला संस्थान से, कभी नहीं करते चमचे प्रस्थान!
चमचे वह कैक्टस है जो स्वयं कभी भी फल फूल जाते हैं, पर अपने आसपास के फूलों की खुशबू निचोड़ कर उन्हें रंग और गंधहीन बना देते हैं! धर्म-कर्म और नैतिकता से इनका कोई मतलब नहीं होता, इनकी निगाह बस निशाने पर ही रहती है, काम कैसे होना है, किस तरह होना है इन्हें कोई मतलब नहीं, बस काम होना चाहिए!
इनके लिए भावात्मक लगाव और नैतिकता का कोई मोल नहीं है, यह किसी भी कठिन खाई को पार कर सकते हैं और अपनी चाटुकारिता से हर कठिन काम को मामूली समझकर आसानी से करने की कोशिश करते है. अधिकांशत: सफल भी होते हैं!
इन चमचों का कर्म नहीं, धर्म नहीं, कोई मान नहीं, सम्मान नही, मात्र एक धर्म है चमचागिरी और यही उनका एकमात्र आसरा है ! चाटुकारिता मात्र नकारात्मक पहलू नहीं रहता बल्कि जो चमचों पर डिपेंड रहते हैं उनके लिए सकारात्मक पहल की तरह काम करते हैं, क्योंकि चमचों के बिना इनको नींद नहीं आती या फिर एक चमचा ही जान सकता है कि जो इस पर निर्भर हैं उन्हें कैसे लूटा जाए और चमचों को ही यह कला हांसिल होती है कि हम जैसे को कैसे लूटा जाए! हम अज्ञानी की उपयोगिता को कैसे उपयोग किया जाए! मूर्खो को अपनी उपयोगिता का अंदाज नहीं होता, यह अंदाज मात्र उन्हीं चतुर चमचों को होता है!
अक्सर आप लोगों की बुराई करते रह जाते हैं और चमचे तारीफों के पुल बांध कर समय का और संबंधों का पूरा सदुपयोग कर अपना हर काम निकाल लेते हैं!
एक जमाना था जब मात्र चांदी के चमचे हुआ करते थे, अब जमाना बदला है और चमचों की चांदी होने लगी है! एक अच्छी रसोई में चमचे का महत्व एक ग्रहणी समझती है लेकिन एक समाज में अगर चमचा आ जाए तो समाज को आर्थिक सामाजिक और नैतिक मूल्यों से खाली कर देता है! आज के समय में उनको पहचानना भी मुश्किल हो गया है!
इन्हीं चाटुकार चमचो की वजह से देश की लीडरशिप सही दिशा में जाने से रुक जाती है और चंमचाई पद्धति से हमारे शिक्षित वर्ग, सामाजिक उदारीकरण की सोच रखने वाले लोग भी आहत होते हैं! जब किसी की योग्यता मात्र इसलिए रोक दी जाए या उस पर इसलिए रोक लगा दी जाए कि वह आप की चाटुकारिता नहीं करता, वह कड़वा बोलता है पर सत्य बोलता है, इसलिए वह एक योग्य पद पर नहीं होता लेकिन अयोग्य चरण साधना करने वाले चाटुकार समय से पूर्व ही पद और प्रमोशन पा लेते हैं! चाहे वह संस्थान हो या समाज में प्रतिष्ठा का सवाल हो, हर जगह चमचा अपनी चालाकी से चरम पर पहुंच जाता है!
बात चमचों की है, जहां तक व्यक्तिगत नॉलेज है चमचे बोल नहीं सकते सिर्फ खरड़-बरड़ की आवाज कर सकते हैं, लेकिन आप चमचे होंगे तो पोस्ट का विरोध भी करेंगे और संचारी भाव कमेंट के माध्यम से या भविष्य में अन्य कोई शिकायत से प्रदर्शित भी करेंगे! शेयर करने से भी डरेंगे!
चमचा सोच रखने वाले आपको हमारे साथ आने से रोकेंगे, आपको डराएंगे और अपनी चाटुकारिता का प्रदर्शन उन लोगों के सामने करेंगे जिसमें उनका हित होगा! एक बात आपको चमचो से अवश्य सीखनी चाहिए कि वो हर उस मूर्ख की उपयोगिता समझते हैं और उन्हें समय रहते उपयोग भी कर लेते हैं!
सभी चमचों की चांदी है? छोटे चमचे हो या बड़े चमचे या चमचों के चमचे सभी चमक रहे हैं! एकमेव आप हैं जो इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं जो चमचों की दौड़ में नहीं है!
चमचे जिस बर्तन में रहते हैं उन्हें खाली कर देते हैं मजा यह है कि बर्तन चमचों को अपनी शोभा समझते हैं!
सोशल मीडिया पर यदि कोई आप को भक्त कह कर संबोधित कर रहा है इसका सीधा मतलब है कि आपका परिचय चमचे के रूप में दे रहा है! तो आजकल चमचों का संबंध भक्त शब्द से भी हो रहा है, इसलिए इसका व्याकरण ऑप्शन समझे और स्वविवेक से ही आंकलन करें!
इंदिरा काल में चमचे जन्मे, अटल काल में फैन, मोदी काल में देशभक्ति बड़ी तो, चमचे हो गए बेचैन! आजकल यह सब देखने को आसानी से मिल जाता है लेकिन कौन क्या है इसका आंकलन करना नामुमकिन जैसा है!
किसी विचारक ने कहा है कि बचपन से हाथों से खाने की आदत रही है, इसलिए चमचों से मैं आज भी परहेज करता हूं!
समय बदला हो, युग बदला हो, सूरज की दिशा बदली हो या मौसम बदला हो, लेकिन चमचे एक जैसे होते हैं और चमचागिरी एक ऐसी सोच है, जो कभी खत्म नहीं होती!चमचे कभी गायब नहीं होते वह भेष बदलकर इसी समाज में रहते हैं!
जब चुनाव आते हैं, जब उनकी उपयोगिता का समय आता है तो स्लीपर सेल के चमचे जाग जाते हैं और आपको अपनी चतुराई से चट कर जाते हैं! देशद्रोही, समाज विरोधी, किसी पार्टी का एजेंट या अन्य लांछन या आरोप लगाना उनका प्राथमिक हथियार होता है!
देश की कुछ ही पार्टियां हैं जहां देश भक्त हैं बाकी सब पार्टियों में चमचे और गुलाम होते हैं व्यंग ही है लेकिन सत्य के करीब है! हमें यह सच स्वीकार करना भी होगा कि चमचे कभी वफादार नहीं होते, वफादार कभी चमचे नहीं होते! चमचे करते फिर रहे चमचों का प्रचार कुछ भी कर लो दोस्तों चमचे ही चलाएंगे सरकार!
एक बात तो अवश्य सुनी होगी बदन पर खादी है जैब में गांधी है लालच का दायरा बढ़ गया है, चाहे वो लालच आमदनी का हो, प्रतिष्ठा का हो या पोजीशन का! खादी का और गांधी का सौभाग्य भी यही चमचे भोग रहे हैं!
किसी ने क्या खूब लिखा है
सांप बेरोजगार हो गए..आदमी काटने लगे ..
कुत्ते क्या करें? जब तलवे आदमी चाटने लगे!!
साभार –
दामोदर सिंह राजावत
(वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक लेखक)
जय हिंद! वंदे मातरम!
Articalarticle on chaplusi in hindi,article on chaplusi in hindi, chamcho ki chandi, chamcho ki chandi, Chaplusi article in hindi, Chaplusi article in hindi, Damodar singh rajawat, Damodar singh rajawat Writer ds rajawat, चमचों की चांदी, चमचों की चांदीचांदी के चमचे व्यंग्य, चांदी के चमचे व्यंग्य, चापलूसी पर लेख, चापलूसी पर लेख, पत्रकार दामोदर सिंह राजावत, पत्रकार दामोदर सिंह