बीजेपी महाकुंभ : कुशल रणनीतिकार की तरह नज़र आए मोदी
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अमेरिकन बेस्ट सेलर राइटर रॉबर्ट ग्रीन की रणनीतिक कौशल पर मशहूर किताब है द 33 स्ट्रेटेजिस ऑफ वार. याने युद्ध को जीतने की रणनीतिक तरकीबें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल के जंबूरी मैदान में जंग का ऐलान करते हुए एक ऐसे ही मास्टर स्ट्रेटेजिस्ट याने कुशल रणनीतिकार की तरह दिखाई दिए. उन्होंने न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र दिया बल्कि उन्होंने अपनी सेना को इस बात की भी पहचान करवाई की उनका दुश्मन कौन है. उस दुश्मन की कमजोरी या गुनाह क्या है? उसे जंग के मैदान में परास्त करना है और इसका ध्येय मंत्र है – मेरा बूथ सबसे मज़बूत.
अभी रुकना नहीं है
चुनावी शंखनाद का यह दिन एक एक तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं के नाम था. लाखों की भीड़ में जमा हुए पूरे प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं को मोदी- शाह की जोड़ी ने खास उत्साह और जोश से भर दिया. मोदी- मोदी के नारों से मैदान गूंज रहा था. जो बता रहा था कि 15 साल से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने वाला कार्यकर्ता अभी भी पूरे जोश – खरोश में है. वो थका हुआ नहीं है. मोदी भावुक होकर अपील करते हैं – 2018 ही नहीं 2019 का दिल्ली का तख्त भी वे कार्यकर्ताओं से मांग रहे हैं. तो इसका मतलब है कि कार्यकर्ता को अभी कहीं रुकना नहीं है. उसे दो लड़ाइयां फतह करना है.
कार्यकर्ता को तैयार कर गए
मोदी- शाह के भाषण में ऐसे कोई नए मुद्दे नहीं थे. जिनकी सुर्खियां बनें. लेकिन कार्यकर्ता के स्तर पर, संगठन के स्तर पर जो बात पहुंचानी थी वो बखूबी उन्होंने पहुंचा दी. अपने विरोधियों के प्रति किसी भी तरह की नरमी या मुरव्वत का वहां कोई भाव नहीं है. कार्यकर्ता को खुलकर याद दिलवाया गया है कि उनकी सरकार के 48 महीने और कांग्रेस के 48 साल में देश की भाजपा की क्या गति कर दी गई थी. मोदी कांग्रेस पर वार करते हैं – सवा सौ साल पुराने राजनीतिक दल को आज माइक्रोस्कोप लगाकर ढ़ूंढ़ने की नौबत आन पड़ी है. कांग्रेस छोटे –छोटे दलों के पैर पकड़ पकड़ कर गठबंधन गठबंधन मांग रही है. बात यहां भी नहीं बन रहीं तो देश के बाहर सरकार को हटाने की साजिश हो रही है.
सिर्फ एक ही भाव परास्त करना
एक चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि ऐसी बातों का रणनीतिक असर कार्यकर्ता पर यह होता है. जब उसे पता चलता है कि उसका सेनापित जंग के मैदान में अपने दुश्मनों के प्रति सिर्फ एक ही भाव रखता है और वो है किसी भी कीमत पर परास्त करना. दूसरा ऐसे तीखे हमलों से कार्यकर्ता नैतिक तौर पर अपनी लड़ाई को जायज़ मानने लगता है. तो उसकी लड़ने की क्षमता सौ गुनी हो जाती है. कोई भी दल, कोई भी कुशल रणनीतिकार अपनी सेना अपने कार्यकर्ता से यही चाहता है.
चुनावी मोड में आया कार्यकर्ता
मोदी इसमें सफल रहे. जंबूरी मैदान से रवाना होने वाला कार्यकर्ता इस मोड में आ गया कि उसे अब लड़ना है. उसकी लड़ाई की शुरुआत हो चुकी है, उसे अब बैठना नहीं है. उसे 15 साल में क्या मिला आगे उसे क्या हासिल करना है. ये छोटा स्वार्थ है उसका मकसद तो दुश्मन को नेस्तनाबूद करना है.
कार्यकर्ता अपने नेता को देखता है.
भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी मानते हैं कि लाखों कार्यकर्ताओं को एक साथ एक जगह पर लाना राजनीतिक तौर पर बहुत असर डालता है. ठेठ ग्रामीण क्षेत्र आदिवासी इलाकों से आए कार्यकर्ता जब इतना बड़ा और भव्य आयोजन देखते हैं, बड़ी सभा को सुनते हैं तो उन पर सकारात्मक असर होता है. जिस पार्टी को वे अपने गांव – कस्बे में देख रहे हैं वो कहां है. इसका पता उन्हें चलता है. प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, पार्टी अध्यक्ष को देखने की उनकी अपेक्षा पूरी होती है.
इसका असर दूर तक
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता मानते हैं कि भोपाल में यह मेगा इवेंट था. जिसमें भाजपा ने अपनी संगठनात्मक ताकत को दिखाया. भाजपा के पास अनुशासित कार्यकर्ताओं की जो फौज है जिसका आज किसी भी राजनीतिक दल से मुकाबला नहीं हो सकता. जिस तरह लाखों की भीड़ भोपाल में जमा हुई. और जिस अनुशासन में फिर रवाना हुई. वह पूरे शहर में एक मिसाल छोड़ गई.