भारत-नेपाल के रिश्तों के इतिहास, वर्तमान और भविष्य पर विशेष रिपोर्ट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेपाल की यात्रा पर हैं। बुद्ध पूर्णिमा पर होने वाली यह यात्र धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों की बेहतरी के साथ पड़ोसी देश से भारत के संबंधों को नए परिप्रेक्ष्य में मजबूत करने और गति देने का काम भी करेगी। कुछ समय पहले वहां के नए पीएम शेर बहादुर देउबा की भारत यात्र और अब भारत के पीएम मोदी का लुंबिनी दौरा रिश्तों को सहज कहने के साथ ही सामरिक और कूटनीतिक महत्व भी रखता है। भारत-नेपाल के रिश्तों के इतिहास, वर्तमान और भविष्य पर नेशनल डेस्क की विशेष रिपोर्ट:
सीमा से नहीं लोगों से जुड़े देश
विश्व में आमतौर पर दो पड़ोसी देशों के बीच रिश्ते कारोबारी और कूटनीतिक होते हैं। सीमाएं जुड़ी होती हैं, लेकिन भारत और नेपाल के बीच रिश्ता इन सबसे अलग है। यहां रिश्ता केवल दो देशों की सीमा के बीच नहीं है बल्कि यहां रहने वाले लोगों से जुड़ा है। धार्मिक, सांस्कृतिक और खान-पान की साझा विरासत इतनी सशक्त है कि कभी विवाद होता भी है तो लोगों के सीधे जुड़े होने के कारण वह सुलझ भी जाता है। यही इन दोनों देशों के बीच भाईचारे के इस रिश्ते की खूबसूरती भी है और शक्ति भी। भारत की अति महत्वपूर्ण उत्तरी सीमा से सटा नेपाल सामरिक दृष्टि से भी बेहद अहम है। भारत के उत्तर में ही चीन की सीमा भी लगती है। नेपाल दोनों देशों से सटा हुआ है।
देउबा के दौरे से बदला माहौल
आमतौर पर नेपाल के साथ भारत के रिश्ते मधुर ही रहे हैं, लेकिन केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में बनी सरकार के समय माहौल बिगड़ा या यूं कह सकते हैं कि बिगाड़ा गया। वर्ष 2020 में ओली सरकार ने नेपाल के नक्शे में बदलाव किया और भारत की सीमा में स्थित लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा पर अपना अधिकार जताया।
राम-जानकी से जु़ड़े दोनों देश
धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव की बात करें तो दोनों देशों के बीच रामायण सर्किट भी मित्रता का अहम ¨बदु है। नेपाल में जनकपुर है तो भारत में सीतामढ़ी। ट्रेन चली है, आस्था और प्रगाढ़ होगी।
बौद्ध परिपथ के माध्यम से भी दोनों देश धार्मिक रूप से जुड़े हैं। भगवान बुद्ध की शिक्षा को दोनों ही देशों में आस्था के साथ स्वीकार किया जाता है और बुद्ध पूर्णिमा पर पीएम मोदी की लुंबिनी यात्र दोनों देशों के धार्मिक रिश्ते के रंग को और चटख करेगी। बाबा पशुपतिनाथ मंदिर एक सशक्त पुल का काम करता रहा है।
बिगड़ने नहीं चाहिए रिश्ते चीन का बढ़ रहा दखल
कभी नेपाल के राजपरिवार के साथ संपर्क रखने वाले चीन ने बाद में अपनी विस्तारवादी नीति में नेपाल को भी मोहरा बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिए। जब नेपाल में राजशाही समाप्त हो गई तो चीन ने वहां के राजनीतिक दलों पर पासा फेंका। नेपाल में भी कम्युनिस्ट विचारधारा वाले राजनीतिक दल असरदार हैं, ऐसे में चीन का प्रभाव बढ़ना स्वाभाविक था।
ओली के सत्ता में आने से चीन के साथ नेपाल की करीबी और बढ़ी। वर्ष 2016 में ओली ने बीजिंग का दौरा किया जिसका उद्देश्य सीमा पर दोनों देशों के बीच आवागमन सुगम करना था।
ओली की यात्र के तीन वर्ष बाद सीमा पर आवागमन मामले को लेकर एक प्रोटोकाल को स्वीकृति मिली जो नेपाल की पहुंच चीन के चार बंदरगाहों तक आसान करता था। इसके साथ ही चीन के तीन जमीनी पोर्ट तक भी नेपाल को पहुंचने की सुविधा प्रदान की गई।
भारत के लिहाज से यह भी अहम है कि मार्च 2017 में चीन के रक्षा मंत्री पहली बार नेपाल के दौरे पर पहुंचे। यह सब सोची समझी रणनीति के तहत था क्योंकि इस दौरे के एक माह बाद ही नेपाल और चीन ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किया।
चीन ने नेपाल में सीधे निवेश के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है। रक्षा मंत्री के दौरे के दो वर्ष बाद 2019 में चीन के राषट्रपति शी चिन¨फग की नेपाल यात्र हुई। -एशिया में छोटे देशों को विकास के नाम पर लुभावनी योजनाएं पेश कर रहा चीन नेपाल में भी इसी मिशन में जुटा और पोखरा व लुंबिनी हवाई अड्डे के विस्तार की योजना से जुड़ गया। ऐसे में भारत के लिए नेपाल के साथ रिश्तों को सहेजना अत्यंत आवश्यक व सही रणनीतिक कदम है।
रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा पीएम देउबा की ‘इंडिया फस्र्ट’ नीति के अंतर्गत किया गया है। काठमांडू पोस्ट ने पीएम देउबा के हवाले से कहा है कि हम इस परियोजना में निवेश करने में असफल रहे हैं और अब भारत के पीएम मोदी की यात्र में हम इस पर चर्चा करेंगे।
पीएम मोदी की यात्र से ठीक पहले नेपाल ने एक बड़ा सकारात्मक संदेश दिया है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नेपाल ने पश्चिमी सेती में हाइड्रोपावर परियोजना के लिए चीन को झटका दिया है और भारत का साथ चाहता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल और भारत के संबंध बिगड़ने नहीं चाहिए। नेपाल के अर्थशास्त्री पोशराज पांडे का यह कहना सही प्रतीत होता है कि नेपाल का यह सोच सही नहीं है कि भारत का विकल्प चीन हो सकता है। तीन तरफ से इसकी सीमा भारत से लगती है। भारत के साथ रिश्ते खराब करना नेपाल के लिए सही नहीं कहा जा सकता है। इसका आर्थिक प्रभाव भी पड़ेगा।
जब नेपाल के साथ सीमा विवाद हुआ था तो वहां के राष्ट्रीय योजना आयोग के सदस्य रहे डा. पोशराज पांडे ने जो कहा था, वह बात यहां पर काफी अहम हो जाती है। उनका कहना था कि जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति में नेपाल के लिए भारत का विकल्प चीन नहीं हो सकता। भारत के साथ पूर्व में मेची से लेकर पश्चिम में महाकाली तक व्यापारिक केंद्र हैं। इसकी तुलना चीन के साथ नेपाल के साथ कुछ ही व्यापारिक केंद्र हैं और वहां भी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। ऐसे में नेपाल का स्वाभाविक कारोबारी साझीदार भारत ही कहा जा सकता है।
आंकड़े कहते हैं कि नेपाल का सर्वाधिक आयात भारत से ही होता रहा है। चीन ने इसमें घुसपैठ की कोशिश की और किसी हद तक कामयाब भी रहा है।
देउबा आए तो भारत ने भी बांहें फैलाकर स्वागत किया। देउबा के दौरे में 132 किलोवाट की डबल सर्किट ट्रांसमिशन लाइन का भी शुभारंभ किया गया। ये लाइन नेपाल के टिला से भारतीय सीमा के समीप स्थित मिरचैया को जोड़ती है। इससे एक दर्जन पनबिजली परियोजनाओं को जोड़ने की तैयारी है।
धीरे-धीरे नेपाल में राजनीतिक स्थितियां बदलीं और शेर बहादुर देउबा पांचवीं बार देश के पीएम बने। देउबा ने अप्रैल 2022 के पहले सप्ताह में भारत यात्र की तो दोनों देशों के संबंधों को जैसे फिर से आक्सीजन मिली। बिहार के जयनगर से नेपाल के कुर्था तक ट्रेन चली। यह योजना तकनीकी कारणों से लंबित थी।