निवेश की दुनिया जितनी बड़ी, उतनी ही जोखिमभरी; जांच परख लें वित्तीय दावों की सच्चाई
निवेश की दुनिया जितनी बड़ी है, उतनी ही जोखिमभरी भूलभुलैया भी है। इसे समझने के लिए किसी अनुभवी की बातों पर भरोसा करें न कि रातोंरात उपलब्धि हासिल करने वाले खोखले दावों पर। इंटरनेट मीडिया पर अक्सर कई ‘इनवेस्टमेंट गुरु’ आपको निवेश के नियम बताते दिख जाते हैं। फाइनेंशियल कोच विनायक सप्रे कहते हैं कि ऐसी बातों पर आंख बंद करके विश्वास करने से पहले कुछ जरूरी मुद्दों पर विचार करें, उसके बाद ही कोई फैसला लें…
(1) सर्वप्रथम ऐसे दावे करने वालों की उम्र देखिये। उन्होंने कब निवेश करना शुरू किया, कितने पैसों से शुरू किया? उनके जीवन के क्या उत्तरदायित्व हैं. कोई व्यक्ति यह दावा कर सकता है कि उसने वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है, कृपया जांचें कि वह धन कितने समय तक चल सकता है, उसने उस धन का कौन सा सूत्र लागू किया है जो जीवन भर समाप्त नहीं होगा और यह गणित बैठाते समय स्वयं के लिए जीवन आयु कितनी निर्धारित की भी है या नहीं. उसने बच्चे/बच्चों के लिए शिक्षा, शादी की लागत क्या मानी है। इन सवालों को नजऱ अंदाज़ कर ऐसे दावे करने वालों की बातों पर आँख मूँद कर विश्वास न करें.
(2) यदि उपरोक्त बिन्दुओं पर आपको संतोषजनक उत्तर मिल जाते हैं और आप उसके मार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं, तो क्या आपको लगता है कि आप उस राशि में जीवित रह सकते हैं क्योंकि आपके खर्च, जीवन शैली उससे बहुत अलग हो सकती है। हमेशा याद रखें कि यह व्यक्तिगत वित्त है अर्थात दो व्यक्तियों की जीवन शैली बिलकुल भिन्न भिन्न हो सकती है. कोई व्यक्ति एक करोड़ की पूँजी इकठ्ठा कर भी काम चला सकता है और किसी को शायद 4 करोड़ भी कम लगें और दोनों अपनी अपनी जगह सही हो सकते हैं. हमेशा याद रखें यह व्यक्तिगत प्रश्न है इसलिए देखा देखि करना अत्यंत घातक साबित हो सकता है.
(3) संभव है कि उसकी पत्नी अच्छी नौकरी कर रही हो या उसके पास पैतृक संपत्ति हो और आपको इसका अंदाज़ा न हो और उसकी बातों से प्रभावित हो नौकरी छोड़ कर आप एक बहुत बड़ा गलत फैसला न ले लें। यह भी जान लेना अति आवश्यक है।
(4) जीवनसाथी की राय लेना बहुत ही आवश्यक है। वैसे तो आजकल अधिकतर नौकरीपेशा व्यक्ति नौकरी से छुटकारा चाहते हैं लेकिन किसी की देखादेखी ऐसे निर्णय न लें. वित्तीय स्वतंत्रता का दावा करने वाले लोग लोगों की इसी कमजोरी को भांप यह शोर मचाते हैं की किस प्रकार उन्होंने बहुत कम उम्र में नौकरी छोड़ दी, संभव है वास्तविकता कुछ और हो. नौकरी छोडऩे से पहले, कृपया सुनिश्चित करें कि आप और आपके पति / पत्नी एकमत हैं। इंटरनेट मीडिया पर खुद को ‘वित्तीय रूप से मुक्त’ घोषित करने में जल्दबाजी न करें। इससे न तो धन मिलेगा और न ही परिवार में सुख।
(4) जरा गौर करिए कि वह व्यक्ति अपनी वित्तीय स्वतंत्रता के बारे में क्यों पोस्ट करता रहता है? हो सकता है ऐसा वह इंटरनेट मीडिया पर अपने फोलोवर बढ़ाने के लिए कर रहा हो, जो उसे ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने या भाषण कार्य या मीडिया कवरेज पाने के लिए मददगार साबित हो सकते हैं । क्या आपका उद्देश्य भी यही है? यदि नहीं, तो अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें।
(5) जिस दिन आप नौकरी छोडऩे करने का फैसला करते हैं, उस दिन आपको स्पष्ट होना चाहिए कि खुद को व्यस्त रखने की आपकी क्या योजना है और उस योजना का असर आपकी बनाई हुई पूँजी पर नहीं होनी चाहिए। हमेशा याद रखें आपकी पूंजी को मुद्रास्फीति की दर से अधिक रिटर्न कमाने की आवश्यकता है। सरकारी आंकड़ों की महंगाई दर पर विचार न करें। शिक्षा और चिकित्सा व्यय में मुद्रास्फीति की दर बहुत अधिक है।
(6 ) घर चलाने के लिए लाभांश (डिविडेंड) आय को कम से कम 45-50 की उम्र तक पहुंचने से पहले आधार न मानें। भगवान न करे अगर बाजार / स्टॉक 3-4 साल तक अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है और जो कई बार हुआ है या कंपनियां लाभांश देना बंद कर देती हैं तो आपकी वैकल्पिक योजना क्या होगी।
इसलिए, ऐसा निर्णय लेने से पहले, इसके बारे में ठीक से सोचें, परिवार के सदस्यों से सलाह मशविरा करें, उनकी राय पर गौर करें और उसके बाद ही निर्णय लें। अंत में मुझे एक विज्ञापन की पंक्ति याद आ गयी कि , ‘दिखावे पर मत जाओ, अपनी अकल लगाओ’.
ऐसे दावा करने वाले तथाकथित साधुओं की बातों पर न जाएं क्योंकि
साधु भया तो क्या भया, माला पिहरी चार।
बाहर भेष बनाईया, भीतर भरी भंगार।।