क्या आजादी के 75 साल बाद भी देशद्रोह कानून जरूरी है-?” —– उच्चतम न्यायालय
पेन दिल्ली, 16 जुलाई: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की, जो देशद्रोह के मामले दायर करने की अनुमति देती है। इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की। अदालत ने फैसला सुनाया कि राजद्रोह एक आव्रजन कानून था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है? केंद्र से पूछा। अदालत ने इसकी संवैधानिक वैधता की जांच करते हुए केंद्र को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को ex army officer वोम्बटकेरे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की। इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। “राजद्रोह कानून ब्रिटेन का आव्रजन कानून है। अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ यह कानून लाया। गोरों ने इसका इस्तेमाल भारतीयों को सताने के लिए किया। वे इस कानून के साथ गांधी और तिलक जैसे लोगों को दबाना चाहते थे। अब हमारे पास आजादी के 75 साल हैं।
न्यायमूर्ति एनवी रमना ने केंद्र से पूछा कि क्या अधिनियम अभी भी आवश्यक था। केंद्र ने इस अधिनियम को निरस्त करने पर अपनी स्थिति बताते हुए नोटिस जारी किया है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें से सभी पर एक साथ सुनवाई होगी।
Venkat, ekhabar Reporter,